फिर सिमट कर बैठ गया हूं अपने में,
यूं उन लोगों ने न जाने क्या क्या कहानी बनाई,
शहर में मजदूर तबका केवल भाड़ा और पेट भरने भर का ही पैसा कमा
खुलेआम मोहब्बत को जताया नहीं करते।
हवाओ में कौन है जिसने इश्क का इतर घोल दिया है।
कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
"गरीबी मिटती कब है, अलग हो जाने से"
सब्र का बांँध यदि टूट गया
“You are likely to fall when you stop paddling your bicycle.
ज़िन्दगी जीने की जद्दोजहद में
हमेशा के लिए कुछ भी नहीं है
एक स्त्री चाहे वह किसी की सास हो सहेली हो जेठानी हो देवरानी