*गृहस्थ-जीवन (राधेश्यामी छंद)*

गृहस्थ-जीवन (राधेश्यामी छंद)
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1)
मुॅंह फेरे एक दूसरे से, जीवन घातक कहलाता है।
जीवन-साथी हैं श्रेष्ठ वही, जिनका सनेह का नाता है।।
2)
दो तन-मन एक प्राण हों फिर, जीवन में सुमन खिलाते हों।
सुंदर वह सिर्फ गृहस्थी हैं, घर-ऑंगन जो महकाते हों।।
3)
संवाद निरंतर रहते हैं, जब युगल प्रेम से बतियाते।
वह धन्य गृहस्थी हैं जिनमें, किंचित भी कलुष न आ पाते।।
4)
संयम मर्यादा जहॉं बसी, उस घर को चलो प्रणाम कहें।
वह ऋषि के आश्रम जैसा है, वह देवलोक सुखधाम कहें।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल 9997615451