ब्रह्म शक्ति
[25/03, 7:12 am] dr rk sonwane: ///ब्रह्मशक्ति///एक
हे! जगन्माता
तुम ब्रह्म शक्ति सार
तुम सकल करतार
तन्मात्रा स्फुरणा विचार अवधार,
तुम्हें मेरा वंदन है बारंबार।।१।।
एक शब्द
या गंध या स्पर्श,
या रस या रूप
या इन सभी की
सम्मिलित अनुभूति
रसा में जल में अनल में
पवन में गगन में
अखिल वरिमा स्वरूपिणी
मुझे आभास होता है
सर्वत्र तुम्हारा ही तो
हे परमानंदमयी!
तुम सकल अवतार
तुम्हें मेरा वंदन है बारंबार।।२।।
मुझे आभास होता है,
उस महा विस्फोट में
जिससे खरबों ब्रह्मांड धारी
वरिमा का जन्म हुआ
वह ब्रह्म की प्रेरणा तुम ही तो थी
हे ! परम सृजनकर्ता
अनंत ऊर्जा का स्रोत तुम ही तो थी
हे !कला ईश्वरी सुखसार
तुम्हें मेरा वंदन है बारंबार।।३।।
मुझे आभास होता है
अखिल वरिमा की धारक
परम-रवि की शक्ति
तुम ही तो प्रसरित होकर
ब्रह्मांड के कण-कण में अंतर्भूत
समस्त ब्रह्मांड वरिमा की चेतना
और महासूर्य शक्ति की कारक हो
ब्रह्मांडों में गति और चिति
परम आत्म तत्व की अनुभूति
तुम ही तो हो तुम ही तो हो
हे !अनंत शक्ति शरणागार
तुम्हें मेरा वंदन है बारंबार।।४।।
क्रमशः ….
[25/03, 8:51 am] dr rk sonwane: ///ब्रह्म शक्ति///दो
समस्त दृष्ट और अदृष्ट
आभासी और आभास हीन
सकल ब्रह्मांडों में
जन्म और लय की नियामक
विद्या और अविद्या की चारक
पंच महाभूतों की शरण
ज्ञान निलय
खर्वगुणखर्व निहारिकाओं की पोषक
समस्त ब्रह्मांडों के केंद्र में
एकात्मक रूप से
तुम ही तो विराजती हो
सकल ब्रह्मांड और समस्त आकाश गंगाएं
तुम्हारी ही तो परिक्रमा करती हैं
वह तत्व रूप शक्ति तुम ही तो हो
हे परम तत्व! कृतिकार
तुम्हें मेरा वंदन है बारंबार।।५।।
हे! ब्रह्म विलासिनी
मुझे आभास होता है
तुम्हारी गुरुता विशालता और प्रकाशिता का
अरबों प्रकाश वर्ष दूर तक
फैली हुई आकाशगंगाएं
और वह भी खरबों खरब
नतमस्तक हूं इस विस्तार के आगे
जो भरे हैं अपने में
कितने कितने विशाल तारों से
तारामंडल ग्रह नक्षत्र उपग्रह
और न जाने कितने ही किस्म के
धूमकेतु उल्काएं पिंड उपपिंड और महापिंड
अंध और श्वेत कूप
जो लय कराते और जन्म देते हैं निरंतर
पुनः कितनी ही निहारिकाओं को
इन सबों में मुझे
तुम ही दिखाई देती हो
हे! पराशक्ति परम शरण
तुम्हें मेरा वंदन है बारंबार।।६।।
क्रमशः ….
[25/03, 9:28 am] dr rk sonwane: ///ब्रह्म शक्ति///तीन
सकल वरिमा का
प्रसरण संकुचन और संलयन
उत्थान और पतन यह सभी तो
नाद है तुम्हारा ही
नाद जो प्रसारित है सर्वत्र
अनंत शक्ति और ज्योति से पूरित
जो पहुंचता है हम सबों तक,
उस शक्ति और ज्योति को जानने वाले
तेरे स्वरूप को जानकर ग्रहण कर
समा जाते हैं तेरे ही स्वरुप में
जो इस जीवन की परम सार्थकता है
हे! जगत माता इस सार्थकता में
और निरर्थकता में भी
तू सर्वत्र वास करती है
हे ! त्र्यंबके
तुझे मेरा वंदन है बारंबार।।७।।
यह तपस्यारत समस्त
ब्रह्मांड निहारिकाएं और तारामंडल
सभी गतिशील हैं तुझसे
और तुझ में ही समाने के लिए
परम सूक्ष्म से लेकर
परम विशाल कलेवर वाली माता
मैं चमत्कृत हूं
समस्त रूपों में विद्यमान रममाण क्रियाशील
परम चेतन सत्ता की आधार पर
तेरे स्वरूप एवं रूप को
जानने के समस्त उपादान
तेरी कृपा ग्रहण किए बिना
पूर्णता को प्राप्त नहीं होते
यद्यपि तुम प्रत्येक स्वरूप में पूर्ण ही हो
मां तुम्हारा यह विश्व प्रपंच
क्रीड़ा मात्र है तुम्हारे संकल्प मात्र का
जो मेरे लिए अबूझ पहेली है
हे! मोक्षदायिनी
तुम्हें मेरा वंदन है बारंबार।।८।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट(मध्य प्रदेश)