“शाश्वत प्रेम”
प्रेम नित अनादि, नित अनंत, शाश्वत उजास है,
काल की सीमाएँ जहाँ मौन, वहाँ इसका वास है।
यह स्वरित वीणा की रागिनि, अनुगूँज युगों-युगों की,
चंद्रिका की शीतलता संग, धरा की माधुरी सजीवों की।
यह वह सुवास जो फूलों में चिरकाल महकती है,
यह वह नीर जो निर्झरिणी संग अनवरत बहती है।
न मिटे, न रुके, न कभी क्षीण हो,
विरह में भी स्नेह समान, यह अनमोल हो।
यह जीवन का मधुर गीत, यह आत्मा का आलाप,
जन्मों-जन्मों की स्मृतियों में, प्रेम रहे अपरंपार, अपार।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”