एक उम्र गंवाई है हमने भी मनमानी के लिए
एक उम्र गंवाई है हमने भी मनमानी के लिए
बचपन जल्दी बिताया; इस जवानी के लिए
कैसे कह दें ; कि कोई जुर्म ही नहीं है हमारा
हम गुनेहगार हैं; अपनी हर नादानी के लिए
भटकते रहे हम एक मरहम की चाहत में बस
कुछ ज़ख्म पाल लिए पूरी जिंदगानी के लिए
वैसे तो हर रिश्ते में बस ज़ख्म ही मिला हमें
तुम्हारा ज़ख्म नासूर बनाया निशानी के लिए
वो नहीं हैं; उससे जुड़ी यादें हैं मेरी कसूरवार
मेरे अश्कों के बहते दरिया की रवानी के लिए
अच्छे बुरे का फैसला तुम जानो; मैं लिख दूंगा
फिर कोई किरदार मिल जाए कहानी के लिए