नज़र -ए- करम

नज़र -ए- करम ख़ुदा का जिस पर होता है ,
वो गर्दिश का मारा भी , फर्श से अर्श की बुलंदी को छूता है ,
जो अना के नशे में हक़ीक़त नज़रअन्दाज़ करता है ,
फ़रेब -ए-‘अक़्ल में ऐसा उलझता है ,
के लाख कोशिशों पर भी ता-‘उम्र ना उबर पाता है।
नज़र -ए- करम ख़ुदा का जिस पर होता है ,
वो गर्दिश का मारा भी , फर्श से अर्श की बुलंदी को छूता है ,
जो अना के नशे में हक़ीक़त नज़रअन्दाज़ करता है ,
फ़रेब -ए-‘अक़्ल में ऐसा उलझता है ,
के लाख कोशिशों पर भी ता-‘उम्र ना उबर पाता है।