*नारी नेतृत्व से ही नारी सशक्तीकरण संभव है*

नारी नेतृत्व से ही नारी सशक्तीकरण संभव है
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22 मार्च 2025, शनिवार, दोपहर 3:00 बजे। रामपुर रजा लाइब्रेरी के रंग महल सभागार में इक्कीसवीं सदी में महिला नेतृत्व शीर्षक से पचासवें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक गोष्ठी का आयोजन हुआ। गोष्ठी में महिलाओं को केंद्र में रखकर विद्वान वक्ताओं ने विविध विचार प्रस्तुत किये ।
सर्वाधिक झकझोरने वाला वक्तव्य पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र ने प्रस्तुत किया। आपने कहा कि ‘नारी सशक्तीकरण’ शब्द आज प्रचलन में है लेकिन जब तक नारी के हाथ में नेतृत्व नहीं आ जाता, तब तक नारी सशक्तीकरण संभव नहीं है। नारी को अबला मानने की वृत्ति से ऊपर उठने का समय आ गया है।
डॉक्टर पुष्कर मिश्र ने भाषण तो सबसे अंत में दिया, लेकिन वैचारिक चिंगारी उन्होंने ही पैदा की। आप स्पष्ट वक्ता हैं। साफ-साफ कहा कि स्त्री-विमर्श कि वह परिभाषा जिसमें स्त्री को भोग की वस्तु समझकर विचार चलता है, हमें स्वीकार नहीं है। आनंद प्राप्त करने के लिए स्त्री नहीं होती है। स्त्री का तात्पर्य मनोरंजन-उद्योग भी नहीं है। जब तक स्त्री को भोग्या समझा जाएगा, स्त्री-विमर्श विकृति पैदा करेगा। संस्कारों से भरा हुआ चिंतन तो वही है, जिसमें नारी को मुक्त करने वाली चेतना के रूप में स्वीकार किया गया है।
आपने ऋग्वेद, दुर्गा सप्तशती, शतपथ ब्राह्मण, वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामचरितमानस सहित अनेक प्राचीन ग्रंथों को उद्धृत किया और बताया कि धर्म का सार पर-पीड़ा को समझने में है। अपने जोर देकर कहा कि दूसरे की पीड़ा को वही समझ सकता है, जिसने स्वयं असह्य पीड़ा को सहा होगा। नारी जब मॉं बनती है तब वह प्रसव-वेदना से होकर गुजरती है। नया जन्म पाती है। ऐसी पीड़ा को समझने वाली स्त्री ही मनुष्यता की पीड़ा को समझ कर संपूर्ण मानव समुदाय का नेतृत्व करने में सक्षम है। आपने सीता जी के धवल चरित्र को भी श्रोताओं के सम्मुख रखा।
गोष्ठी का आरंभ प्रोफेसर मधु चतुर्वेदी के वक्तव्य से हुआ। आप श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, गजरौला में कार्यरत हैं। आपने भारतीय परंपरा में अर्धनारीश्वर के विचार को श्रोताओं के सामने रखा और कहा कि इस समन्वय मूलक पूर्णता में ही सफलता निहित है। शिव और शक्ति दोनों के मिलन से ही सृष्टि का उत्कर्ष है। आपने बताया कि नारी की परिकल्पना प्रकृति के रूप में की गई है। यह प्रकृति जब विकृत होती है, तब द्वेष की ओर मुड़ जाती है। लेकिन जब यही नारी-प्रकृति संस्कार से युक्त होती है, तो संस्कृति का प्रवाह उत्पन्न करती है।
मध्यकाल में आक्रांताओं के कारण नारी पर बहुत से बंधन लादे गए। उसे भोग्य के रूप में भी माना जाने लगा, लेकिन नारी की मूल चेतना कभी भी दबाई नहीं जा सकती। सुंदर नीतिगत चेतना के कारण नारी में नेतृत्व की सभी जगह नैसर्गिक क्षमता विद्यमान है।
प्रोफेसर मधु चतुर्वेदी एक अच्छी कवयित्री भी हैं। एक गजल भी उन्होंने नारी चेतना के संदर्भ में श्रोताओं के सम्मुख आकर्षक स्वर में प्रस्तुत की। इसकी एक पंक्ति इस प्रकार थी:
इस रेत को चट्टान बनाने का शुक्रिया
डॉ किश्वर सुल्ताना राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामपुर में हिंदी की विभागाध्यक्ष रह चुकी हैं। अब सेवानिवृत्त हैं। आपने वैदिक काल तथा महाभारत युग में स्त्री की गौरवशाली स्थिति को प्रणाम करते हुए बताया कि प्राचीन युग में महिलाऍं मंत्रों की रचना में भी समर्थ थीं । आपने स्त्री के बगैर पुरुष को अपूर्ण बताया। वर्तमान संदर्भ में आपने कहा कि पुलिस, प्रशासन, उद्योग, राजनीति सभी क्षेत्र में महिलाऍं नेतृत्व कर रही हैं।
डॉक्टर बेबी तबस्सुम राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामपुर में जीव विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। बिना कोई कागज हाथ में लिए हुए आपने बातचीत की शैली में धारा-प्रवाह भाषण दिया। श्रोताओं से सीधे संवाद की सुखद परिस्थितियॉं निर्मित कीं।
आपने प्रश्न किया कि क्या घरों में माताऍं अपने बच्चों की मानसिकता को सही दिशा में निर्मित कर पा रही हैं ? क्या वह उन्हें समझ पाती हैं कि स्त्री कोई वस्तु नहीं है ? वह खेल का सामान नहीं है ? क्या उन्होंने अपने बच्चों को यह सिखाया है कि इंद्रियों पर काबू पाना आवश्यक है ? क्या पुरुष और स्त्री के संतुलन से जो प्राकृतिक वातावरण सभ्यता का बनना चाहिए, इसकी शुरुआत हमारे घर-परिवारों से हो पा रही है ?
डॉक्टर बेबी तबस्सुम का प्रश्न था कि बलात्कार करने वाले भी घरों से ही निकल कर आते हैं और उनका शिकार हो जाने वाली महिलाऍं भी घरों से ही आती हैं। सबल नारी चेतना के अभाव में ही यह दुष्कृत्य हो पाते हैं। डॉ बेबी तबस्सुम ने महिलाओं का आवाहन किया कि वे सजावट की वस्तु न बनें । समाज को नेतृत्व दें। प्राचीन काल की गार्गी और आधुनिक युग की सुनीता विलियम्स बन कर दिखाऍं। आज घरों के भीतर तब्दीली लाने की बड़ी जरूरत है। परिस्थितियों को बदलना ही होगा। एक शेर से उन्होंने अपने वक्तव्य को इस प्रकार प्रभावशाली बना दिया:
मसाइल से उलझकर मुस्कुराना मेरी फितरत है
नाकामियों पे अश्क बहाना मुझे नहीं आता
प्रोफेसर नीरजा सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज में इतिहास विभाग की प्रोफेसर हैं । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के आसन से आपका वक्तव्य अत्यंत सारगर्भित और विद्वत्तापूर्ण रहा। आपने बताया कि आज संसार-भर में नारियॉं बड़ी-बड़ी कंपनियॉं चलाती हैं। सीईओ के पद पर आसीन हैं। जीवन के हर क्षेत्र में अग्रणी हैं ।लेकिन अभी भी नर और नारी के बीच में भेदभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हो पाया है। विधवा विवाह, बाल विवाह तथा पर्दा आदि के प्रश्न पर अभूतपूर्व चेतना आई है लेकिन काफी काम किया जाना अभी बाकी है। नारी का नेतृत्व व्यक्ति, समाज और नीति निर्माताओं के सामूहिक प्रयास से ही संभव है। नारी नेतृत्व के पक्ष में अनेक प्रकार से आवाज उठाने के लिए आपने राजा राममोहन राय, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, कमला नेहरू, सरदार पटेल आदि का भी स्मरण किया।
कार्यक्रम में आकाशवाणी रामपुर की अवकाश प्राप्त निदेशक मनदीप कौर जी की स्नेहमयी उपस्थिति काफी दिनों बाद देखने में आई। सर्वश्री रमेश कुमार जैन, डॉक्टर अब्दुल रऊफ खान तथा डॉक्टर मेहंदी हसन की गरिमामयी उपस्थिति ने समारोह को चार चॉंद लगा दिए। श्रीमती सनोबर खान का संचालन बधाई के योग्य रहा। अंत में श्रीमती सनम अली खान की धन्यवाद-प्रस्तुति ने शेरो-शायरी से वातावरण को प्रफुल्लित कर दिया।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
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