मुक्तक

मुक्तक
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खिलते नव पुष्प सभी मन को हरते।
मन में मधु की प्रिय रंगत हैं भरते।
प्रिय हैं लगते जब महके छोर सभी।
नव फागुन का गुणगान किया करते।
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छंद- नलिनी/ भ्रमरावली/ मनहरण (सगण×५)
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य