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22 Mar 2025 · 1 min read

*अंबर अवनि को मिलाया है*

अंबर अवनि को मिलाया है
************************

दर्द को सीने में छुपाया है,
अपनों ने ही तो रुलाया है।

अगले–पिछले कर्मों का फल,
कुछ दे दिया कुछ बकाया है।

पीड़ा की क्रीड़ा न कोई जाने,
भरी नदियों सा नीर बहाया है।

गैर की कुर्बत के हुए हैं आदी,
खुद का साया ही पराया है।

बादल बन बरसा है मनसीरत,
अंबर अवनि को मिलाया है।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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