सार्थक इच्छाएँ

इच्छा सृष्टि का मूल है
गणित उसका सहायक
नहीं हैं मेरी इच्छाएं अर्थहीन
वह जोड़ती हैं मुझे सृष्टि के ल्क्ष्य से
निर्भय हो समझना , साधना इच्छाओं को
यह किसी ग्रह या सौरमंडल के अधीन नहीं
यह हैं अबाध , सर्वव्यापी , अविनाशी
मत कुचल इन्हें यूं ही।
——शशि महाजन