“कुछ ऐसा हो जाए”

कुछ ऐसा करिश्मा हो जाए,
धरती अंबर से मिल जाए।
चांद को भी चांदनी से इक बार,
मिलने का सुनहरा अवसर मिल जाए।।
नदी बुझाने प्यार सभी की,
तो उसको भी मेघ का सानिध्य मिल जाए।
अपनेपन का एहसास मिले ना मिले
पर जुगनुओं को जंगल मिल जाए।।
ना घुटे भांग इस होली के पर्व में
पर रंग प्रेम का दिलों से दिलों का मिल जाए।
खाक छानती आंखें भीड़ में कितनों की,
उनको झुरमुट अपनों का मिल जाए।।
काँटों संग व्यतीत करते फूल हमेशा,
उनको शबनम का तोहफ़ा मिल जाए।
ठंड से कांपते मासूमों को,
छत अपनी पक्की मिल जाए।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”