पश्चताप के आँसू

एक लम्बे अरसे के इंतज़ार बाद आशा देवी को एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई थी| वह भी बहुत तीर्थ स्थलों में अनगिनत मन्नतों के बाद, बहुत सारे देव दरबार में माथा टेकने के फलस्वरूप आशा की गोद किलकारी से भरी थी| दम्पति ने बहुत सोच-विचारकर उस का नाम राम रतन रखा था। उन दोनों का विश्वास था कि प्रभु श्रीराम की कृपा से ही उन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ है, इसलिए पुत्र का नाम राम रतन रखा जाए और रखाया भी ।
आशा और अविनाश की शादी लगभग सोलह वर्ष पहले हुई थी| बहुत धूमधाम से तो नहीं लेकिन एक मध्यम परिवार की शादी जिस तरह से होती है, हुई थी| चाहते तो अविनाश के पिता शादी में धूम-धड़क्का खूब करबा सकते थे| परन्तु अविनाश के माता-पिता को दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं था। उन्होंने तो आशा के माता-पिता को भी कहलवा भिजवाया था कि वाहवाही के लिए पैसा उड़ाने से कोई फायदा नहीं है। लोग झूठी सामाजिक शान-शौकत के लिए शादी-विवाह के मौके पर कर्ज-वर्ज लेकर अपनी औकात से ज्यादा खर्च कर देते हैं और बाद में कर्ज के बोझ से जिन्दगी भर दबे चले जाते हैं। यह सलाह लड़की वाले को कैसे न भाये; अंधरा को मिले दो-दो आँख !
बुढ़ापे की संतान सभी को प्यारी होती है। राम रतन जब भूमिष्ठ हुआ था सारे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गयी थी| दोनों वेकत (व्यक्ति) को बेशुमार आनंद की अनुभूति हुई थी। कुछ महीनों बाद जब राम रतन कुछ खाने-पीने लगा, आशा उसे काजू, किशमिश, छुहारा, पिस्ता, अखरोट जैसे मेवों के साथ दूध पिलाती थी । कागजी बादाम को सिलौटी पर पीस-पीस कर दूध में फेंट-फेंट कर उसे जबरदस्ती पिलाती थी ताकि एक वर्ष का उसका बच्चा दो वर्ष का दिखने लगे| इसके अलावा मीट, मछली, अंडा मुर्गा के संग रोटी-चावल उसे मुँह में ठूंस-ठूंस कर खिलाया करती थी| माँ की प्रबल इच्छा थी कि उसका राम रतन जितना जल्दी हो सके, जबान हो जाए।
राम रतन को जल्दी जबान बनाने के पीछे अविनाश दंपत्ति का एक उद्देश्य था। वह यह कि जितना जल्दी उनका बेटा जबान होगा, उतनी जल्दी उसकी शादी-विवाह होगी| बहू आएगी, घर-आँगन का रौनक बढेगा,पोता-पोती से घर भरेगा,किलकारियां गुजेंगी और घर खुशहाली से भर जायेगा । इन्हीं सारी बातों को सोच-समझ कर आशा और अविनाश ने राम रतन को हर तरह का पौष्टिक आहार दिया| राम रतन चार साल में ही आठ साल का दिखने लगा।
सरेख होने पर आशा ने उसका नाम एक बगल के प्राईमरी विद्यालय में लिखवा दी|उस विद्यालय में गाँव के ही हेड मास्टर थे| उनका नाम ईलाके में काफी मशहूर था-सकलदीप गुरु जी| गाँव के बगल के एक और शिक्षक थे जिनको शम्भू सिंह मास्टर के नाम से जानाजाता था|इसके अलावे तीन और शिक्षक थे जो कुछ दूर से साईकिल सवारी से स्कूल आते थे| वहां राम रतन पढ़ता कम था लेकिन बदमाशी में अव्वल था| विद्यालय से तरह-तरह की शिकायत आती थी | एक दिन अविनाश जी बाजार जा रहे थे और उधर से शम्भू सिंह मास्टर बाजार से आ रहे थे| मास्टर साहब को देखकर अविनाश जी बोले-“ प्रणाम सर, क्या हालचाल है|”
“प्रणाम, प्रणाम| बढ़िया है | क्या अविनाश बाबू, कैसे हैं ”
“ ठीक हैं सर,आपका हालचाल?
अच्छा है,बढ़िया है|
और आपके चेला का क्या हाल-चाल है|”
“किसका, राम रतन का ?”
“हां, सर जी|”
“ क्या बताएं ,अविनाश जी , हम विद्यालय में आपको बुलानेवाले ही वाले थे कि संयोग से आप मिल गए|” एक शिक्षक की शालीनता निभाते हुए शम्भू सिंह मास्टर बोले|
“क्या किया है रतन ने |” अचंभित होकर अविनाश जी जिज्ञाशा जाहिर की|
“क्या बताऊँ, आये दिन रोज सहपाठियों से झगड़ा-झंझट वह करता रहता है| इतना छोटा बच्चा होकर कुछ शिक्षकों से बेअदबी भी करता है| उसपर थोड़ा लगाम लगाईये ,अभी बच्चा है संभल जाएगा|”
“ऐसा सुनकर मुझे काफी शर्मिन्दगी महसूस हो रही है| हम भरसक कोशिश करेंगे कि आपको आगे से ऐसी शिकायत का मौका न मिले |” आत्मविश्वास के साथ अविनाश जी बोले|
“ईश्वर करे आप सफल हों और उसमें सुबुद्धि आ जाए|” कहते हुए शम्भू सिंह मास्टर आगे बढ़ गए|
घर आकर जब अविनाश रास्तेवाली बात की चर्चा आशा देवी से की तो आस्घा देवी को भी आघात लगा| कौन माँ-बाप अपनी संतान की शिकायत सुनकर दुखी नहीं होते?
आशा देवी स्वगत बोली-“ एकलौता संतान और इस तरह का आचरण| अभी से ही नाक कटवाने लगा | कल भी वह भीखन साह के बच्चा से झगड़ा झंझट करके आया था| उस बात को अपने पेट में दबाये राखी ही थी कि अब यह सुनने को मिल गया| सोची थी जल्दी जवान होगा,घर का शान होगा| लेकिन यह तो सारे अरमानों को अभी से ही ख़ाक में मिला रहा है |”
राम रतन की इस तरह की शिकायत आम थी| कभी स्कूल से,कभी हजम टोली से तो कभी राजपुतान के उतरावाली टोला से तो कभी दक्खिंवाली टोला से आया करता था|घर में डांट – डपट होती थी लेकिन राम रतन अपने में सुधार नहीं लाता था|नहीं करने का वादा करता और फिर एक नई शरारत कर देता था|
किसी तरह प्राईमरी शिक्षा समाप्त हुई और उसका नाम एक उच्च विद्यालय के छठा वर्ग में दर्ज करवाया गया| यहाँ भी उसके उग्र स्वभाव एवं आचरण में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया लेकिन येन-केन-प्रकारेन मैट्रिक सेकंड डिविजन से उत्तीर्ण हो गया|
अविनाश ने राम रतन को मैट्रिक पास करते ही इंटर में उसका दाखिला नजदीक के एक कोलेज में दिलवा दिए। कोलेज गाँव से तकरीबन दस किलो मीटर की दूरी पर था|राम रतन कोलेज साईकिल से जाता था|एकदिन जब वह साइकिल से कोलेज से आ रहा था|गाँव से कुछ दूरी पर उसे चार-पांच लड़का मिलकर रास्ता रोक दिए और उसे घेर लिए|राम रतन साईकिल को रोका,स्टैंड पर खडा किया और पूछा- क्या बात है,मुझे तुमलोग क्यों रोका ?
अभी बताते हैं| टोली का एक लड़का देबुआ बोला-तुम अपने को बोंस बुझते हो,उस दिन तुम अपने दोस्त लाल बाबू की इशारा करते हुए बोला- बताओ, उसको क्यों मारा था?
मारेंगे,तुम क्या कर लेगा? बिना डरे चुनौतीपूर्ण आवाज में राम रतन बोला
फिर क्या था सभी ने मिलकर राम रतन को खूब कूट दिया| किसी तरह रामरतन साईकिल लेकर घर पर पहुंचा| इस अवस्था में अपने पुत्र को देखकर आशा देवी अवाक रह गयी|
कभी-कभी बुरी घटना भी अच्छा परिणाम दे जाती है| इस घटना ने उसकी आँखें खोल दी| उसे पता चल गया कि शेर पर सवा सेर भी होता है|अब राम रतन बदमासी से ज्यादा पढाई- लिखाई पर ध्यान ज्यादा देने लगा| शरारत भरी बचपना को किशोरावस्था में नकारने लगा |
गांव में जो भी रिश्तेदार आते, अविनाश किसी-न-किसी बहाने उनसे बातचीत करते, थोड़ा बैठते-उठते लेकिन उनका मूल उद्देश्य उनसे राम रतन की प्रशंसा करना होता है| राम रतन की तारीफ में वे दो बातें कहना नहीं भूलते थे| पहला राम रतन पढ़ने में काफी तेज है और दूसरा भविष्य में उनका बेटा बड़ा नाम करेगा, उनका नाम रौशन करेगा। हलाकि उनकी बात से गाँव वालों को काफी ताज्जुब होता था लेकिन गगनव के किसी लड़का की शिकायत बाहर जाए, उचित नहीं हा , यह सोचकर उस समय सभी चुप्पी नाध देते थे|
कभी- कभी बंजर भूमि पर भी वनस्पति उग जाती है वही हाल राम रतन का था| भाग्य ने साथ दिया | ग्रेजुएशन होते-होते उसे एक छोटी-मोटी प्राइवेट नौकरी भी लग गई,एक दवा की दुकान में सेल्समैनी की |लेकिन गांव-जबार के लोगों में यह अफवाह फैलाया गया कि रतन शहर में काफी अच्छी नौकरी करने के लिए गया है|
अविनाश हमेशा राम रतन की शादी की चर्चा किसी-न-किसी से चलाया करते रहते थे। रतन की मां भी उसकी शादी के लिए बहुत लालायित थी। जो भी लड़की वाला आता, वह उनके यहाँ सम्बन्ध करने के लिए अत्यंत उतावली हो जाती| प्रबल इच्छा होती कि जल्दी-से-जल्दी उस घर में उनका सम्बन्ध हो जाए लेकिन होइयें वही जो राम रची राखा| अविनाश जी पेशे से वकील थे, लड़की के परिवार की आर्थिक स्थिति को भांपते उन्हें देर नहीं लगती थी| जैसे कोर्ट में जिरह करके सत्य उगलवाते थे उसी तरह से लड़कीवाले को पेर कर सच्चाई निचोड़ने का प्रयास करते थे| बहुत कुटुंब उनकी चतुरता को परख लेते थे और दोबारा आने का वादा करके जाते लेकिन फिर दोबारा उनके दरवाजे पर लात नहीं धर पाते थे |
इस तरह अगुआ के साथ लड़कीवाले आये गए| किसी से लेन-देन में खटपट तो किसी से चाल-व्यवहार की विसंगति| किसी के लिए उम्र बाधक बनता तो किसी के लिए शिक्षा| अंततः चांदीपुर के गणेशी राय की बेटी से शादी की बात बन गयी,शादी पक्की हो गई। पांच भर सोना, पांच लाख नगद और दरवाजे का खर्च| वकील साहब खानदानी आदमी थे| समाज में अपना रूतबा कायम करने के लिए शादी काफी शानो-शौकत से किये| इस इच्छा को पूरा करने में उन्हें कुछ कर्ज-वर्ज भी करना पडा लेकिन उससे उन्होंने मुँह नहीं फेरा|बहुत अच्छा से शादी संपन्न हुई| दीक्षा अपने ससुराल आयी| सास आशा देवी थाली में फूल,रोरी अक्षत-चन्दन लेकर उसकी आरती उतारी और घर चहल-पहल से भर गया|
शादी के बाद दो महीने भी नहीं बीते थे कि आशा तथा दीक्षा के बीच टन-झन शुरू हो गया। बहुत दिनों तक तो आशा देवी अपनी पूतोह की बात अपने मन में ही गलाती-पचाती रहीं | लेकिन पानी जब सर से ऊपर बहने लगा तो उसने एक दिन अपने पति अविनाश से बोली- सुनते हैं, आजकल घर में क्या-कुछ चल रहा है इसका कुछ पता भी है या नहीं?
“क्या हुआ? आज इस तरह से क्यों बोल रही हो ? जब तक तुम नहीं बताओगी तबतक मुझे कैसे पता होगा घर के अन्दर की बात ?”
अरे क्या बताऊँ, सोचती थी आप खुद कोर्ट-कचहरी के काम से परेशान रहते हैं| घर के काम काज में फंस जाने पर रोज्र्र-रोटी कैसे चलेगी,यही सोचकर बहुत दिनों तक दीक्षा की मन शोखी की बात आपसे नहीं बतलाई लेकिन आज मजबूर होकर आपसे कहना पड़ रहा है | पत्थर पिघलानेवाली आवाज में आशा देवी अपने पति से गुहार लगाई|
“अच्छा तो बताईये आखिर हुआ क्या है?” अविनाश जी बोले|
“देखिये,आप तो जानते ही हैं| जब से बहू आई है मैंने कभी भी उसके साथ कोई अप्रिय व्यवहार नहीं किया,मुझे बेटी नहीं थी इसलिए उस कमी को बहू को देखकर पूरा किया| कितना मन्नत के बाद रतन को पाया था| बहू बेटी में कभी फर्क नहीं किया परन्तु आज जब उसने मुझसे कहा कि सासू माँ, आपकी मैं सब चाल समझती हूँ| आप एक खटिया को दो करना चाहती हैं|आप मेरे प्रति रतन के दिल में घृणा फैलाना चाहती हैं,यह मैं जीते जी हरगिज नहीं होने दूँगी, किसी कीमत पर|” सारा वृत्तांत एक सांस में बतलाकर आशा थोड़ा राहत महसूस की|
V स्थिति ऐसी आ गयी ! मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मेरे घर में ये सब चल रहा है|पहले तो अविनाश इस झगड़े में पड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन जब आशा देवी ने कहा कि उसने अपनी बेटी से भी ज्यादा अपनी बहू के लिए प्यार किया था और अब वही बहू कह रही है कि घर में सबसे बुरी मैं हूँ तब अविनाश को इस पर प्रतिक्रिया देनी पड़ी। उन्होंने आशा को समझाया कि उसे धैर्य रखना चाहिए क्योंकि बहू अभी नादान है।
लेकिन, उस दिन के बाद, स्थिति और भी बिगड़ती गई। आज तो बेटे, बहू और सास के बीच त्रिकोणात्मक लड़ाई हो गई थी। कोई भी किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था। यह लड़ाई निर्णायक लड़ाई बन चुकी थी। बहुत हल्ला-गुल्ला के बाद निर्णय लिया गया कि राम रतन अपनी पत्नी को लेकर शहर चला जाए।
अविनाश भीतर-भीतर टूट चुके थे। वह बहुत परेशान थे, लेकिन उन्होंने किसी से अपनी परेशानी का इज़हार नहीं किया।
अविनाश को तो तीनों को साथ लेकर चलना था। वह राम रतन को खोना नहीं चाहता था, और न अपनी को| दीक्षा किसी तरह सास-ससुर से अलग अपनी दुनिया बसाना चाहती थी|, कलह और त्रियाचरित्र के प्रभाव में, राम रतन को उसके माता-पिता से अलग करना नहीं चाहती थी। राम रतन जांता में गेहूं की भांति पिसा रहा था | एक ओर माता-पिता थे, जो उसे अपनी ओर खींच रहे थे, और दूसरी ओर पत्नी थी, जो उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही थी।
जब जब राम रतन नौकरी पर से घर आता,घर में कलह का वातावरण बन जाता था|बहुत दिनों तक अविनाश जी घर में शान्ति बनाने की कोशिश करते रहे लेकिन दीक्षा की अड़ियलपन के सम्मुख घुटना टेक दिए|आशा भी अब अस्वस्थ रहने लगी थी|तन और मन दोनों बीमार हो चुका था|राम रतन का झुकाव भी पत्नी की और था और वह भी पत्नी दीक्षा को अपनी नौकरी पर ले जाने का मन बना लिया था. अंतत: राम रतन दीक्षा को लेकर चला गया और घर में दो लोग के दो लोग रह गए-एक बीमार पत्नी और दूसरा चौथेपन की बोझ को ढोता हुआ पति|
Bरात में जब अविनाश जी बिछावन पर आशा के पास बैठे तब आशा देवी टुकुर-टुकुर अपने पति को बिलकुल मौन होकर देख रही थी मानो वह मंथन कर रही हो कि मेरे पति के दिल दिमाग में क्या चल रहा है |
शायद आशा अपने पति के चेहरे पर यही पढ़ सकी कि सुख के शिखर पर चढ़ते-चढ़ते अक्सर लोग दुख के दरिया में गोंता लगा लेते हैं।
रामरतन दीक्षा को अपनी नौकरी पर ले तो आया लेकिन यहाँ आने के बाद पहले की अपेक्षा ज्यादा खर्च बढ़ गया| प्राइवेट नौकरी थी, पगार कम थी , मेहनत अधिक और ऊपर से अतिरिक्त एक व्यक्ति की जिम्मेवारी| पहले जब दीक्षा उसके साथ न थी तब उसका काम चल जाता था परन्तु दीक्षा के आने के बाद बहुत ही तंगी में जीवन चलने लगा| बढे खर्च को पूरा करने के लिए राम रतन कोई और कोई काम ढूँढने लगा|अल्प आय वाले लोग बहुधंधी बनते ही हैं| ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की लालच में गलत लोगों की संगत में राम रतन पड़ गया| शुरू में तो उसे पता नहीं चल पाया कि वह अपनी नौकरी के आलावा पैसा कमाने का जो तरीका अपनाया है, अवैध है| वह दवा कंपनी का काम करता ही था| जब नए लोगों से जान-पहचान हुई उन लोगों ने उसका फ़ायदा उठाना शुरू किया| नकली दवा की आपूर्ति राम रतन से करवाने लगा| एकदिन जब पुलिस के हत्थे चढ़ा तब पता चला कि वह सेल्समैनी के साथ-साथ अवैध धंधे में भी संलग्न है| उस पर मुकदमा दर्ज हो गया| दवा कंपनी उसे नौकरी से निकाल दिया|
कुछ महीनों तक तो पहले से संचित पैसे से काम चला लेकिन बाद में रामरतन की स्थिति फटेहाल हो गयी| इधर दीक्षा भी गर्भवती थी उसे भी देखभाल की जरूरत महसूस होने लगी| शुरुआती दौड़ में तो दीक्षा और रामरतन अकड़ में रहे, सम्बन्धियों से भी मधुर सम्बन्ध नहीं निभा पाए| लेकिन जब दिन पतराने लगे, उसे अपने लोगों की याद आने लगी |
उस दिन अविनाश जी कचहरी से सबेरे आ गए थे| साथ में थोड़ी सी मिठाई भी लेकर आये थे जो एक मुकदमे में जीत के उपलक्ष्य में उन्हें एक मुव्वकिल के द्ववारा उपहार स्वरूप मिली थी | फरवरी का महीन था| न ज्यादा गरमी थी और न ज्यादा ठंढा ही| अविनाश जी घर पर आते ही बाट जोह रही आशा को देते हुए बोले-“ लो यह मिठाई इसे रख दो” और अपने बेड रूम में काला कोट खोलकर हैंगर पर टांग दिए|फिर घरेलू वस्त्र पहनकर एक लम्बी राहत की सांस लेते हुए सोफा पर बैठ गए| आशा देवी एक छोटे टेबुल पर एक प्लेट में सेव-निमकी के साथ एक ग्लास पानी रखकर चाय बनाने किचेन में चली गयी थी| जबतक चाय लेकर आशा देवी आयीं तबतक वकील साहब सेव-निमकी खाकर पानी पी चुके थे| चाय का एक कप अपने पति को दे दी और एक कप खुद लेकर सोफा पर बैठती हुयी बोली- “ वह मिठाई कैसी है ?” चाय की चुस्कियां लेते हुए अविनाश जी बोले-“ अरे वो ब्रजेश सिंह वाला गबनवाला का केस था न उसका आज फैसला अपने पक्ष में हुआ था |वही मिठाई दिए थे|”
“अच्छा|” आशा की आवाज में उदासी थी| वकील साहब उसकी उदासी को ताड़ गए|अगला घूंट लेकर बोले-“ आज खुशी का दिन है फिरभी आप के चेहरे पर उदासी दिख रही है”
कप की चाय तबतक ख़त्म हो चुकी थी|कप को टेबल पर रखती हुई आशा देवी बोली-“ हां,कुछ बात ही ऐसी है|
“क्या बात है ? बताईये|” आशंका और उतावलापन के साथ अविनाश जी बोले|
“बता रही हूँ | दोपहर में अरुण, जो राम रतन का चचेरा साला नहीं है,आया था| कह रहा था कि राम रतन जीजा पर एक मुकदमा हो गया है, ऐसा चाचा बोल रहे थे| आपलोगों को तो पता होगा ही| इधर आया था उर्मिला दीदी के यहाँ तो सोचा आप सब का हालचाल भी ले लूं|”
“और क्या बताया अरुण ने ?
“और क्या कहेगा, बोल रहा था कि दीदी भी शायद पैर से भारी है|” इतना सुनते वकील साहब के चेहरे पर खुशी और गम दोनों के भाव दिखने लगे|
मैं तो कहूंगा;चाहे नासमझी में दोनों जो भी किया हो;हमलोगों को राम रतन के पास चलना चाहिए| तुम्हारा क्या विचार है ?
इसमे विचार क्या करना है; संतान का दुःख-सुख अपना ही दुःख- सुख है|चलो रात ज्यादा हो रही है| खाना खा लेते हैं फिर योजना बनाते हैं|
हाँ, चलो डिनर कर लेते हैं| कल सुबह निकलते हैं|
जब आशा दम्पति रामरतन के डेरा पर पहुंचे उस समय शाम हो चली थी| दोनों व्यक्ति घर पर ही थे| वकील साहब कॉल बेल बजाया| राम रतन दरवाजा खोला और अपने पिता और माता को देखकर दंग रह गया| इस अप्रत्याशित दृश्य को देखकर खुशी से झूम उठा| दोनों को चरण स्पर्श करते हुए जोर से राम रतन बोला- “सुनती हो, पापा मम्मी आये हैं|”
प्रसव पीड़ा से परेशान दीक्षा बिछावन पर से पैर छूने के लिए उठ ही रही थी कि आशा देवी उसके समीप जाकर बोली- “ज्यादा दर्द हो रहा है, मैं अभी कुछ करती हूँ|” दीक्षा की आँखों में शर्मिन्दगी के आंसू थे| डबडबाई आँखों से अपनी सास एवं ससुर के पैर छूकर प्रणाम किया और बोली- आप लोग मनुष्य नहीं देवता हैं| मैं अपने देवता को पहचानने में भूल की हूँ| मुझसे गलती तो बहुत बड़ी हुई है अगर मुझे माफ़ कर सकते हैं तो कर दें|”
आशा देवी उसे गले से लगाती हुई बोली- “अरे पगली अभी इन बातों की कोई जरूरत नहीं है| यह बताओ तेल कहाँ है तुझे मालिश कर देती हूँ|”
नहीं माँ जी, आप के आने से बहुत राहत महसूस कर रही हूँ| अभी चाय नास्ते का प्रबंध करती हूँ| इतना बोलकर वह किचेन में चली गयी |
मन जब सुख का अनुभव करने लगता है तब तन की पीड़ा अमूमन कम हो जाती है| पहले जितनी बेचैनी का अनुभव दीक्षा कर रही थी उसमे राहत महसूस करने लगी| जो दीक्षा बिछावन से उठकर नित्य क्रिया में भी असमर्थता अनुभव करती थी आज उसे सास-ससुर के आव भगत करने में थोड़ी भी परेशानी नहीं हो रही थी| चाय नास्ता के पश्चात हाल-समाचार हुआ| रामरतन ने अपने पापा से खुलकर सारी बात बता दी| संकट के समय सहारा देनेवाले लोगों से खुलकर अपनी वास्तु स्थिति बतलाने में लोग नि:संकोची हो जाते है| रात में खाना-पीना हुआ और सभी लोग बिछावन पर सोने के लिए चले गए|
रात्रि में आशा देवी को नए मेहमान के आने की खुशी में नींद नहीं आ रही थी तो अविनाश बाबू को पुत्र-संकट का निवारण कैसे हो, इस सोच से उनकी नींद उड़ गयी थी| देर रात नींद आयी और दोनों सो गए|
सुबह उठकर वकील साहब अपने पुत्र पर लगे आरोपों का बारीकी से अध्ययन किया | कोर्ट कचहरी में वर्षों समय बिताने के बाद उन्हें कोर्ट कचहरी के रीति-रिवाज से परिचित थे| न्यायालय की लेट लतीफी, जाली सबूतों और जाली गवाह के आधार पर मिलनेवाला न्याय, न्याय-प्रक्रिया को प्रभावित करनेवाले कारक, न्यायालय के अन्दर अवस्थित भ्रष्टाचार, वकील होते हुए भी वकालत पेशे की तिकडमबाजी सहित बहुत सारी चालाकियों से वे भलीभांति परिचित थे|वे जानते थे कि कोर्ट कचहरी से कम समय में निदान पाना असंभव है|कोर्ट कचहरी के फेर में पड़ने पर मेरे पुत्र की प्रगति बाधित हो जायेगी| अत: उन्होंने इन परेशानियों से निजात दिलाने के लिए एक तरकीब सोची, एक रणनीति मन ही मन बनायी| सारे सबूतों को पहले इकठ्ठा किया, कंपनी से गुहार लगाई प्रशासन के सामने अपनी बात रखी, हाथ पैर जोड़े और एक सप्ताह के भागीरथ प्रयास से अविनाश बाबू अपने आत्मज राम रतन को इन झंझटों से निकाल दिया|राम रतन को अन्दर अन्दर काफी शर्मिन्दगी हो रही थी और पिता के प्रति आदर और सम्मान की भावना बहुगुणित होने लगी|
इधर दीक्षा के दिन भी पुरे हो चुके थे| आशा दीक्षा के लिए जो बन पड़ रहा था वो कर रही थी| आर्थिक रूप से हरसंभव मदद अविनाश दम्पति ने की| एक दिन जब दीक्षा को दर्द उठा, आशा देवी उसे अस्पताल ले जाकर भर्ती कराई | हॉस्पिटल में जाने के करीब आठ घंटा बाद दीक्षा प्रसव पीड़ा से मुक्त हुई और एक पुत्र को जन्म दिया| समूचे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गयी|मिठाईयां बांटी गयी|सगे सम्बन्धियों को जानकारी दी गयी|
नए मेहमान के आगमन पर एक वृहद् समारोह का आयोजन किया गया|समारोह में दीक्षा और रामरतन ने अपने माता पिता के प्रति असीम आभार व्यक्त करते हुए अपने पुराने गलत व्यवहार के लिए क्षमा याचना भी की | भरी सभा में आशा दीक्षा से गले लगते हुए बोली – “बाल बच्चे नासमझी में कुछ गलत-सही कर देते हैं लेकिन माता-पिता का धर्म है कि वे उसे नजरअंदाज करें और संतान को हमेशा अपनी प्रेम और आशीर्वाद की छाया प्रदान करें|”
सगे सम्बन्धियों के साथ साथ उपस्थित सभी लोगों ने करतल ध्वनि से उनकी बात का हार्दिक स्वागत किये और अविनाश तथा आशा के प्रयत्नों की भूरी-भूरी प्रशंसा की|इधर राम रतन और दीक्षा की आँखों से अविरल अश्रु धारा बह रही थी जो दिखाबा के आंसू नहीं थे बल्कि पश्चाताप के आंसू थे|