ये नफ़रत है किसी ?

बता दीजिए ये मोहब्बत है कैसी,
अपनों से करते तिज़ारत है कैसी।
किसी के लिए वो ख़ुदा बनके बैठे,
किसी से जफ़ा, ये नफ़रत है कैसी?
वो क्या सोचते हैं कोई भी न जाने,
मुश्किल बड़ी कोई समझे भी कैसे।
अनबुझ पहेली वो बनकर हैं बैठे,
कोई इस भँवर में उलझे भी कैसे।।
किरदार उनका बड़ा ही अज़ायब,
दिखाते हैं सबको शराफ़त है कैसी।।
किसी के लिए वो ख़ुदा बनके बैठे,
किसी से जफ़ा, ये नफ़रत है कैसी?
वो तौहीन करके सुकूँ ढूंढते हैं,
फिर भी न मिलता आराम दिल को।
दुवा है हमारी ऐ मालिक रहम कर,
ख़ुदा दे सुकून-ए-अंजाम दिल को।।
बड़े बेरहम हैं वो पत्थर के जैसे,
ना जाने दिखाते नज़ाकत है कैसी।।
किसी के लिए वो ख़ुदा बनके बैठे,
किसी से जफ़ा, ये नफ़रत है कैसी?
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।