@महाकुंभ2025

ईश्वर रंग अद्भुत भर डाला।
सांवली सुन्दर भोली बाला।
मनमोहिनी यह पावन लागे।
सुन्दर दृग मनभावन लागे।।
अतिसुन्दर मुस्कान तुम्हारी।
तुम कुटिया की राजकुमारी।।
कजरारे अति प्यारे लोचन।
अपलक हो, करें विमोचन।।
अधर रसीले मय का प्याला।
जैसे हो कोई हो मधुशाला।।
निश्छल यह अतिसुन्दर नैन।
निरख जिसे सब पावे चैन।।
ईश्वर की यह कृति निराली।
देख जिसे दुनिया मतवाली।।
दृष्टि तुम्हारी नयन कटारी।
तुम पर मिटती दुनिया सारी।।
अद्भुत चक्षु दिखे कजरारे।
कितने हिय हैं तुम पर हारे।।
सुन्दर, सुकोमल, सुकुमारी।
तुम मंदिर की प्रेम पुजारी।।
ईश्वर रंग अद्भुत भर डाला।
सांवली सुन्दर भोली बाला।।
स्वरचित व मौलिक
कवयित्री: शालिनी राय ‘डिम्पल’
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।
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