*चमचागिरी-महात्म्य (हास्य कविता/राधेश्यामी छंद)*

चमचागिरी-महात्म्य (हास्य कविता/राधेश्यामी छंद)
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1)
यह सबसे बड़ी कला जग में, चमचा कैसे बनते सीखो।
जब भी साहब के पास दिखो, मक्खन मलते ही बस दीखो।।
2)
साहब को चप्पल पहनाओ, जूते रुमाल से चमकाओ।
साहब की कोठी पर जाकर, कदमों में उनके बिछ जाओ।।
3)
साहब जब थोड़ा मुस्काऍं, चमचे को दुगना मुस्काना।
साहब जब दुखी नजर आऍं, चमचे को ऑंंसू ढलकाना।।
4)
साहब की हॉं में हॉंं बोलो, साहब को जी-हजूर कहना।
साहब के जैसी चाल चलो, उनकी नजरों में ही रहना।।
5)
साहब जो काम चाहते हैं, उनकी हर इच्छा पूरी हो।
साहब के चरणों से ज्यादा, चमचे की कभी न दूरी हो।।
6)
साहब जो दिन को रात कहें, चमचा भी यह ही दोहराए।
तुक में साहब की तुक केवल, चमचा निज बोली से गाए।।
7)
खुद को मूरख समझेगा जो, साहब को गुणी बताएगा।
वह चमचा सदा उच्च पद को, दिन-प्रतिदिन पाता जाएगा।।
8)
चमचों में सर्वश्रेष्ठ चमचा, जो भी बनकर दिखलाता है।
साहब का वह ही माल सभी, धीरे-धीरे घर लाता है।।
9)
नेता की परछाई बन कर, पीछे-पीछे जो जाता है।
वह चमचा नेता का विशेष, चमचा जग में कहलाता है।।
10)
चमचा वह है जो नेता को, शक्कर या गुड़ की खान लगे।
चमचा वह है नेताजी की, गाली जिसको सम्मान लगे।।
11)
चमचा वह है जो नेता के, किंचित विरुद्ध कब सुनता है।
चमचा वह है जो ऑंख मूॅंद, नेता के पथ को चुनता है।।
12)
जीवन में सफल अनुभवी बन, चमचा पहचान बनाता है।
अपने चरित्र से नेता का, दर्शन चमचा करवाता है।।
13)
चमचे में नेता को पाऍं, सब गुण चमचे में आ जाऍं।
वह चमचे परम भाग्यशाली, जिनको नेता निज बतलाऍं।।
14)
चमचा विनम्र भोला-भाला, अति आज्ञाकारी होता है।
हर घड़ी समस्या के सम्मुख, वह विपदाहारी होता है।।
15)
चमचा ही गोपनीय सारी, सौदेबाजी को करता है।
फाइल साहब तक जाने से, पहले चमचा ही भरता है।।
16)
कलयुग में केवल चमचा ही, इस भवसागर को तरता है।
चमचा ही केवल घर अपना, सोने-चॉंदी से भरता है।।
17)
इस जग में सारे पढ़े-लिखे, कोरे कागज रह जाते हैं।
ऊॅंचे पद-पदवी मान सदा, अनपढ़ चमचे ही पाते हैं।।
18)
चमचा बनकर ही महामूर्ख, ऊॅंची गति को पा जाते हैं।
इसलिए बनो चमचा सुंदर, सब सुख चमचे ही पाते हैं।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451