कदम तेरे द्वार पे जब भी मेरे पड़े।

कदम तेरे द्वार पे जब भी मेरे पड़े।
मन हो गया पावन तन से सारे मोह घटे।।
हर ओर हो गए ऊजाला ज्ञान के।
अज्ञान के अंधेरे तेरी शरण में आ कर मिट गए।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
कदम तेरे द्वार पे जब भी मेरे पड़े।
मन हो गया पावन तन से सारे मोह घटे।।
हर ओर हो गए ऊजाला ज्ञान के।
अज्ञान के अंधेरे तेरी शरण में आ कर मिट गए।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”