होली तो मनभावन त्यौहार है..
वो कहते हैं कि…
होली तो लुच्चे लफंगों का त्यौहार है
हो हल्ला करते हुड़दंगियों का त्यौहार है
रंग बिरंगा रूप धरे छपरियों का त्यौहार है।
खून उबाल आ जाता है जब ये सुनना पड़ता है
कि होली तो आवारा मनचलों का त्यौहार है।
चाहे तो उन्हीं की भाषा में, समझा दें हम
एक बोल पर, कीप साइलेंट करवा दें हम
बस व्यर्थ की बातों में उलझने से बचते हैं
अन्यथा बेगैरतों को, नाकों चने चबा दें हम।
हमारे संस्कार हमारी संस्कृति रोक देती है हमें
कदम आगे बढ़ाने पर, मां टोक देती है हमें
उनका एक इशारा, नृपादेश से कम नहीं
अन्यथा जीती बाजी ,पलटाना आता है हमें।
कहती है क्या वो भी सुन ले
तो होश ठिकाने आ जायेंगे
कड़वी बेलों पर पल भर में
अमृत से फल लद जायेंगे।
कहती हैं कि
कुत्तों के चिल्लाने से कभी ,
कि कुत्तों के चिल्लाने से कभी
मृगेंद्र राह बदला नहीं करते
मेंढकों के टर्राने से कभी
गजेन्द्र नद छोड़ा नहीं करते।
इसलिए जिसे कुछ समझ नहीं
उसे फिर समझाना क्यों ?
जड़ मूढ़,ढेले विदूषक को
भगवत ज्ञान सुनाना क्यों?
उनका काम बस भौंकना भर है
तो भौंकने दो उन्हें
कुछ फर्क नहीं पड़ता हमें
चीखने दो, चिल्लाने दो उन्हें।
जवाब हमें कर्म से देना है जुबान से नहीं
भटकाना चाहते हैं वो, पर भटकना नहीं।
वक्त आने पर पत्थर भी पिघल जाया करते हैं
कुत्सित अभिमानी मिट्टी में मिल जाया करते हैं।
देखें है बड़े बड़े, नत हो दर पर शीश नवाए,
गरजने वाले बादल कभी बरसा नहीं करते।
जरूरी नहीं, रोने से हर बार मिल जाए झुनझुना
बहलाव, सहलाव या मिल जाए प्यार की थप्पी
पासे की कभी कभी ,उल्टी भी पड़ जाती है चाल
आघात, प्रहार मारकुट संग कटि, हस्त पग चप्पी।
इसलिए उन्हें बता देता हूं मैं
एक बार फिर समझा देता हूं मैं
कि होली न लफंगों का त्यौहार है
न हुड़दंगियों का त्यौहार है
न छपरियों का त्यौहार है।
और न ही मनचलों का त्यौहार है।
फिर होली है क्या है, तो सुनें…
होली तो दिलवालों का त्यौहार है
मस्ती के मतवालों का त्यौहार है
चाट पकौड़े रस भरी गुजिया
खाने और खिलाने का त्यौहार है।
भाभी संग दिन भर हंसी ठटठे
पिचकारी से उछलती प्रचंड जलधारा
उछल उछलकर खाकर जहरीले कोरड़े
मधुर रमणीय मनभावन, दर्द सहने का त्यौहार है।
अंत में..
होली पर हम अपरिचित से परिचित हो जाते हैं
रूठे मित्र को बाहों में उठा ले जाते हैं ।
क्या भूल क्या शूल, क्या वैर विभाव,
सब भूल होली पर बैरी को भी गले लगाते है।
हमारी होली तो एक मनभावन त्यौहार है
हमारी होली तो एक मनभावन त्यौहार है
© सुशील कुमार ‘ नवीन ‘, हिसार
96717 26237
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार है। दो बार अकादमी सम्मान से भी सम्मानित हैं।