चिंता
दाना नहीं है घर में गहरा रही है शाम !
खाएगा बेटा क्या लौटेगा करके काम !!
बंदर आ बैठे मुंडेर पर तोड़ने कबेलू तमाम !
पिछली रसद मिली नहीं आई मुसीबत राम !!
बरसने को है बादल ओले को तू थाम !
बचे कबेलू ना टूटे रक्षा करना राम !!
नहीं है जेवर घर में मचा है कोहराम !
गिरवी जमीन न डूबे हो गई नींद हराम !!
लौटी नहीं घर बेटी, ढलने को है शाम !
लगी महफिल कोठी में टकरा रहे हैं जाम !!
घर की अस्मत दानापानी और खतरे में है जान !
सो रहे हैं मुल्क के इंतजामी रक्षा करना राम !!
• विशाल शुक्ल