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12 Feb 2024 · 1 min read

कविता

स्नेह

स्नेह शुद्ध शब्द व्योम अन्तहीन भव्य है।
नित्य उर बसा सदैव गीत प्रीत नव्य है।।

सिन्धु सा महान दान यज्ञ धर्म नम्रता।
स्रोत यह विशाल भाव से बनी विनम्रता।।

स्नेह में महान प्यार प्राकृतिक विभाव है।
देव लोक स्तुत्य का सुसांस्कृतिक स्वभाव है।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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