इक उल्लू ही बहुत है, बर्बादी को बाग।
इक उल्लू ही बहुत है, बर्बादी को बाग।
क्या होगा उस बाग का,जहँ उल्लू हर शाख।।
-“प्यासा”
इक उल्लू ही बहुत है, बर्बादी को बाग।
क्या होगा उस बाग का,जहँ उल्लू हर शाख।।
-“प्यासा”