होलिका दहन
किसी का मचान, छान्ह, टाट, लकड़ी या कुछ,
बिन पूछे ला के मत फूँक देना पात में।
गालियों की गूँज से न करना तू शर्मसार,
तुमसे छोटे या बड़े होंगे वहाँ नात में।
होलिका के साथ अवगुण भी जलाना तुम,
होलिका जलाने का है भाव इसी बात में।
होलिका जलाना हर साल सब लोग किंतु,
मन का कलुष भी जलाना उस रात में।
घनाक्षरी- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 13/03/2025