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11 Mar 2025 · 3 min read

*पुस्तक समीक्षा*

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक का नाम: सजल काव्यधारा (सजल शतक)
संपादक द्वय: जितेंद्र कमल आनंद रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 73006 35812 तथा डॉ महेश दिवाकर मुरादाबाद उत्तर प्रदेश मोबाइल 99273 8377
प्रकाशक: विभु सक्सेना, रुद्रपुर, उधम सिंह नगर
मोबाइल 991709 10002
प्रकाशन वर्ष : 25 फरवरी 2025
प्रकाशन से जुड़ी संस्था का नाम: आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा रामपुर तथा अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर उत्तर प्रदेश
जितेंद्र कमल आनंद का संपर्क सूत्र: मंगल भवन, बड़ी शिव मूर्ति मंदिर के पास साईं विहार कॉलोनी रामपुर उत्तर प्रदेश
समीक्षक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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सजल काव्य धारा : उर्दू के प्रचलित शब्दों में नुक्ता न लगाने का देवनागरी आंदोलन
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सजल काव्यधारा (सजल शतक) का स्वागत किया जाना चाहिए। हिंदी की शुद्धता को स्थापित करने के लिए जो प्रयास लंबे समय से हिंदी सेवी करते रहे हैं, यह पुस्तक उन्हीं सात्विक प्रयासों की एक सुंदर कड़ी है । प्रस्तुत पुस्तक में 25 सजलकारों की 101 सजलें संग्रहित की गई हैं। प्राय सभी सजलों में उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया गया है। प्रसन्नता का विषय यह है कि एक भी उर्दू शब्द के नीचे नुक्ता नहीं लगाया गया है। इसके लिए सजल आंदोलन के संस्थापक डॉ अनिल गहलोत तथा इस पुस्तक के प्रकाशन की योजना के सूत्रधार जितेंद्र कमल आनंद बधाई के पात्र हैं।

हिंदी गजलों को उर्दू के प्रभुत्व से मुक्त करने के लिए जितेंद्र कमल आनंद ने सजल आंदोलन को सशक्त बनाने का निर्णय लिया। सजल शतक के प्रकाशन का कार्य हाथ में लेकर नुक्तों के प्रयोग को चुनौती दी और हिंदी देवनागरी को उसका मूल सात्विक कलेवर प्रदान किया। इस कार्य में संपादन की दृष्टि से डॉक्टर महेश दिवाकर ने आपका साथ दिया।

डॉ राकेश सक्सेना ने अपनी भूमिका में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया है, जिसमें हिंदी गजलकारों की गजलों में उर्दू शायरों द्वारा अनेक त्रुटियां बताई जाती थीं। इसीलिए सजल शुरू हुआ। भूमिका में डॉक्टर राकेश सक्सेना ने लिखा है कि उर्दू के नुक्तायुक्त शब्दों को सजल अस्वीकार करती है। विभिन्न भाषाओं के प्रचलित शब्दों का प्रयोग तो होगा, किंतु व्याकरण हिंदी का होगा। आशा की जानी चाहिए कि डॉ राकेश सक्सेना के आग्रह के अनुरूप हिंदी सेवी हिंदी के स्वरूप को विकृत होने से बचाएंगे। इस दिशा में सजल काव्यधारा सजल शतक मील का पत्थर साबित होगी।

रामपुर में 1994 से आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा कार्यरत है। वर्ष 2001 में रामकिशोर वर्मा का ऊर्जावान सहयोग जितेंद्र कमल आनंद को प्राप्त हुआ और तब से अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर का अग्रणी काव्य मंच है। सजल शतक इसी का सुपरिणाम है।

सजल के संस्थापक डॉक्टर अनिल गहलोत के सजल विषयक विस्तृत लेख को परिशिष्ट में शामिल करने से पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ गई है। हिंदी में गजल लेखन को नुक्तों से मुक्त रखने के अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर के आग्रह से हिंदी भाषा में नई चेतना से ओतप्रोत कवियों और समीक्षकों का हिंदीसेवी समूह भविष्य में विकसित हो सकेगा, ऐसी आशा भी की जानी चाहिए। सजल काव्यधारा सजल शतक को बधाई। पुस्तक का कवर आकर्षक है। सजल काव्यकारों के रंगीन चित्र पुस्तक को अत्यंत आकर्षक बना रहे हैं। बैक कवर पर जितेंद्र कमल आनंद का जीवन परिचय पाठकों के लिए प्रेरणा का विषय बनेगा।

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