खेलें रंग जीजा साली

आई होली मतवाली, खेलें रंग जीजा साली।
एक दूसरे के तन, मलते गुलाल हैं।
मार-मार पिचकारी,सारी काया रंग डारी।
भोले-भाले जीजा जी भी, करते कमाल हैं।
नीले-पीले हरे-लाल,जीजा जी के हुए गाल।
काले-काले नैन सुर्ख़,लगते बवाल हैं।
बचा कोई अंग नहीं, जहां रंगा रंग नहीं।
और रंग कहाँ रंगे, उठते सवाल हैं।।
गली-गली घूम रहे, भंग पीके झूम रहे।
मल रहे रंग गाल,छोरे ये छिछोरे हैं।
खाते पापड़ गुझिया,संग में आलू भुजिया।
भरे नहीं पेट कभी,छोरे ये चटोरे हैं।
काका हों या फिर काकी,सबकी निकालें झाँकी।
संग हुडदंगों की ये ,टोलियाँ बटोरे हैं।
देख नारी अलबेली, करें खूब अठखेली।
करें खूब ताँक-झाँक,डालें नैन डोरे हैं।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)