कोई शिकवा नहीं

इस दोस्ती का वैसे तो कोई सिला नहीं
उसको भी मेरे सिवा कोई मिला नहीं
उसको मैं कोई उलाहना भी नहीं देता
जो मिलकर भी ठीक तरह से मिला नहीँ
उनकी उन हरकतों से भी वाकिफ हूँ मैं
जिनका उनको खुद भी ज्यादा पता नही
जिंदगी की चाहतों में इतना उलझ गए
मौत के कितने करीब हैं इसका पता नहीं
डॉ राजीव “सागरी” “अप्रसन्न”
बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
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