चुस्की चुस्की

चुस्की चुस्की , मैंने तेरी कमी चखी।
मुश्किल जीना ,जब से आंख लगी।
हौले-हौले , तू मन में उतरने लगा।
वजूद मेरा , था फिर बिखरने लगा।
देखते देखते, मैं तुम को चाहने लगी
आंहें भरती , थोड़ा सा कराहने लगी।
थोड़ा थोड़ा , तू भी था पिघलने लगा।
दिल विरह , की आग में जलाने लगा।
चुपके-चुपके ,तू कर गया बेवफाई
मगर बेवफाई ,भी तूने वफ़ा से निभाई।
सुरिंदर कौर