मैं निखर जाता हूँ

मुख तेरा देखकर मैं निखर जाता हूँ।
दिखती हो हर जगह मैं जिधर जाता हूँ।
प्रेममय शरीर पे पाकर स्पर्श तेरा,
पहले से कहीं ज्यादा सँवर जाता हूँ।।
तेरे बिन इक पल जीना गवारा नहीं
दूर जानें के डर से सिहर जाता हूँ
रूठ कर तुम जब मुझसे मुख फेरती हो
दिल टूट जाता है मैं बिखर जाता हूँ
देखता हूँ जिधर सिर्फ तुम आती नजर
देख रूप आपका मैं ठहर जाता हूँ
भूल जाता हूँ मैं अपने घर की डगर
पता नहीं रहता है कि किधर जाता हूँ
तेरी अदाओं ने ऐसा जादू किया
जाती हो तुम जिधर मैं उधर जाता हूँ
वैसे बहुत आवारा बदमाश हूँ मैं
आपके आगे थोड़ा सुधर जाता हूँ
मिलते जो एक दफा भूल पाते नहीं
छोड़कर दिल में अपना असर जाता हूँ
पर्दे से ढक रखना आँखों को अपनी
नजर के रास्ते दिल में उतर जाता हूँ
अपना वादा हमेंशा निभाता हूँ मैं
अपनी बातों से मैं न मुकर जाता हूँ
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)