दोहा छंद विधान ( दोहा छंद में )
जय माँ शारदे
देना माता शारदे , दोहा का संज्ञान |
और साथ में चाहता , लय का शुभ प्रतिमान ||
लिख विधान दोहा सरल , दग्धाक्षर के वर्ण |
अनुनासिक अनु स्वार के ,प्रस्तुत करता पर्ण ||
समकल के सँग कल विषम , लिखता जगण विचार |
दोहा में लय किस तरह , रखती अपनी धार ||
लय खो जाती किस तरह , डाला यहाँ प्रकाश |
काव्य दोष संकेत भी , लिखता प्रमुख “सुभाष “||
तीन वर्ण जब लघु मिलें , बने एक-दो भार |
नगण बोल गिन लीजिए , उच्चारण आधार ||
कुछ शब्दों के भार पर , चलते जहाँ विवाद |
उच्चारण आधार से , मिटते सभी विषाद ||
दोहा गेयक छंद शुभ , लय है इसके प्राण |
नहीं साँच को आँच है , प्रस्तुत करूँ प्रमाण |
दोहा लिखना सीखिए , शारद माँ धर ध्यान |
तेरह ग्यारह ही नहीं , होता पूर्ण विधान ||
गेय छंद दोहा लिखो , लय का रखिए ख्याल |
बने कलन में मेल जब , सुंदर लगती चाल ||
चार चरण सब जानते , तेरह – ग्यारह भार |
कलन चूक से चल उठे , दोहा पर तलवार ||
अष्टम नौवीं ले जहाँ , दो मात्रा का भार |
दोहा अटता है वहाँ , गाकर देखो यार ||
जगण जहाँ पर कर रहा , दोहे का आरंभ |
आप सभी यह मानिए , लय का टूटे दंभ ||
पूरित चौकल पर जगण, देता लय व्यवधान |
करके आप प्रयोग भी , ले सकते संज्ञान ||
कलन पंच प्रारंभ भी , लय को जाता लील |
खुद गाकर ही देखिए , पता चलेगी ढील ||
अब कलन ( समकल- विषमकल )को समझिए ~
तीन-तीन-दो , से करें , पूरा अठकल एक |
जोड़ रगण “दो- एक -दो” , विषम चरण तब नेक ||
चार – चार का जोड़ भी , होता अठकल मान |
विषम चरण तब यति रगण , सुंदर देती तान ||
(रगण = 212 ,
विषम चरण यति जानिए , करे रगण से गान |
अथवा करता हो नगण , दोहा का उत्थान ||
नगण = 111) उच्चारण भार 12
यह लय देते है सदा , गुणी जनों का शोध |
खुद गाकर ही देखिए , हो जाएगा बोध ||
सम चरणों को जानिए , तीन – तीन- दो -तीन |
चार- चार सँग तीन गिन, पर है ‘गाल’ प्रवीन ||
दोहा का है सम चरण , तब पदांत है गाल |
अर्थ दीर्घ लघु जानिए , हल है यहाँ सबाल ||
षटकल का चरणांत भी , सम में करता खेद |
दोहा खोता लय यहाँ , लिखे ‘सुभाषा ‘ भेद ||
दो चौकल=अठकल बनें , त्रिकल-त्रिकल- दो =आठ |
विषम चरण दोहा जुड़े , बने रगण यति पाठ ||
नगण प्रयोग समझिए 🙏नगण (,तीन लघु वर्ण )
का मात्रा भार एक – दो होता है
निम्न दो दोहो में पहला चरण गलत लिखा व उसे
सही करके तीसरे चरण में बतलाया गया है कि
इस तरह लिखना सही होता है |
दोहा लिखना सरल है , चरण बना यह दीन |
दोहा लिखना है सरल , चरण नहीं अब हीन ||
दोहा लिखे आप सभी , नहीं चरण तुक तान |
आप सभी दोहा लिखें , दिखे चरण में गान ||
भरपाई मात्रा करें , माने दोहा आप |
गलत राह पर जा रहे , छोड़ कलन के माप ||
अब दग्धाक्षर प्रयोग पर ~
दग्धाक्षर से मत करें , दोहा का प्रारंभ |
कहता पिंगल ग्रंथ है , सभी विखरते दंभ ||
इन्हें ह झ र भ ष जानिए , रखें सदा संज्ञान |
पाँच वर्ण यह लघु सदा , मानें सभी सुजान ||
पाँच वर्ण यह दीर्घ हो , करिये खूब प्रयोग |
विनय सुभाषा आपसे , दूर तभी सब रोग ||
विशेष ~
दोहा में यदि कथ्य हो , तथ्य युक्त संदेश |
अजर – अमर दोहा रहे , कोई हो परिवेश ||
तुकबंदी दोहा बना , नहीं तथ्य पर तूल |
ऐसे दोहे जानिए , होते केवल भूल ||
चार चरण दो पंक्तियाँ , अक्षर अड़तालीस |
दोहा छंद सुहावना , है स्वतंत्र जगदीश ||
कलन छोड़ दोहा लिखा , लय अटके हर हाल |
अठकल यदि निर्दोष हो , कभी न बिगड़े चाल ||
हाथ पाँव चारों चरण , भाव मानिए प्राण |
इनमें मेल मिलाप हो , दोहा है तब बाण ||
चरण विषम में यति रगण, सम पदांत है ताल |
विषम और समकल सही, दोहा वहाँ निहाल ||
दोहा के गुण पर कहें , चरण बनें है चार |
चारों में यदि मेल हो , पढ़ने मिलता सार ||
नगण -रगण की यति नहीं , कलन -भार सब दूर |
चरण भाव जुड़ते नहीं , तब दोहा है धूर ||
सभी सुनो अब श्रेष्ठवर , बनना दोहकार |
वाचिक में लेता नगण , लघु दीर्घ है भार ||
यदि छंदों में गेयता , लाना है श्रीमान |
मात्रा-कलन-विधान का , रखना होगा ध्यान ||
कुंडलिया दोहा लिखें , रहे गेय पहचान |
यही गेयता छंद की , समझो होती जान ||
उच्चारण से देख लो , मात्राओं का भार |
ज्ञात सहज हो जायगा , यही एक उपचार ||
जगण चरण में आदि हो , लय को करता नष्ट |
ज्ञानी करके देख लें , समझ जायगें कष्ट ||
अनुस्वार( ं बिन्दु) और अनुनासिक , ँ चन्द्र बिन्दु )
हिंदी या देशज लिखो, रखो शब्द की आन |
अनुनासिक अनु स्वार के, कभी न बदलो गान ||
अनुस्वार का बिंदु जब , लघु वर्ण पर गान |
दो मात्रा गिन लीजिए , उच्चारण की तान ||
अनुस्वार यदि दीर्घ पर , बढ़े न मात्रा भार |
बड़ा सरल है व्याकरण , निकले यह ही सार ||
अनुनासिक लेता नहीं , कोई मात्रा भार |
करते इसे प्रयोग है , देखा छंदाकार ||
शब्द लीजिए मंगलं , है ल पर अनुस्वार |(मंगलम् )
उच्चारण यह कह रहा , है दो मात्रा भार ||
दोहा में लिखकर यहाँ , बतलाया जो सार |
माता मेरी शारदे , करती कृपा अपार ||
सुभाष सिंघई जतारा {टीकमगढ़) म०प्र०