चले हैं सब यही सोचकर की मंज़िल हमको मिल ही जाएगी।

चले हैं सब यही सोचकर की मंज़िल हमको मिल ही जाएगी।
कहां मालूम है इनको ज़िंदगी आगे इन्हें क्या तमाशा दिखलाएगी।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
चले हैं सब यही सोचकर की मंज़िल हमको मिल ही जाएगी।
कहां मालूम है इनको ज़िंदगी आगे इन्हें क्या तमाशा दिखलाएगी।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”