*होली-उत्सव (राधेश्यामी छंद)*

होली-उत्सव (राधेश्यामी छंद)
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1)
हर बार पराजित हुआ झूठ, जीती केवल सच्चाई है।
कब आग जला प्रहलाद सकी, केवल होलिका जलाई है।।
2)
फागुन की पूरनमासी को, हम सत्यकथा दोहराते हैं।
पावन प्रज्ज्वलित अग्नि कर के, सब खूब नाचते-गाते हैं।।
3)
होलिका-दहन यह उत्सव है, अत्याचारी ठुकराने का,
दुष्टों का राज नहीं टिकता, यह मतलब पर्व मनाने का।।
4)
यह था हिरण्यकश्यपु जिसने, किंचित न ईश का जाप किया।
यह एक दुष्ट वह राजा था, जिसने दुर्लभतम पाप किया।।
5)
यह पर्व होलिका-दहन याद, पावन प्रहलाद दिलाता है।
जिसने प्रभु में विश्वास रखा, रखवाला कहा विधाता है।।
6)
होलिका-दहन के क्या कहने, मिलजुल कर मस्ती छाती है।
जब पूर्ण चंद्रमा नभ पर है, यह धरती भी इठलाती है।।
7)
होलिका-दहन के अगले दिन, मस्तों की टोली चलती है।
यह रंगों का त्योहार मधुर, मस्ती यह कभी न ढलती है।।
8)
होली पर इंद्रधनुष निकला, कब श्वेत वस्त्र रह पाया है।
होली पर रंग बिखरते हैं, दिखती रंगों की काया है।।
9)
जो चली जिधर से पिचकारी, रंगों से जग नहलाती है।
यह है वसंत की मादकता, ऋतुरानी जो कहलाती है।।
10)
कब भेद रहा नौकर-मालिक, राजा या रंक-अमीरी का।
होली त्यौहार प्रेम का है, यह पर्व न दादागीरी का।।
11)
होली का मिलन अनूठा है, सब गले प्रेम से मिलते हैं।
जब गले मिले दो होली में,दो हृदय प्रेम से खिलते हैं।।
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451