पतझड़ पाती
पतझड़ पाती
क्या सुनाऊं अपनी कहानी
क्या सुनाऊं सबकी कहानी
घर का राजा, घर की रानी
महल न दासी ,जीवन दानी
उल्लासों ने जब घर छोड़ा
मल्लाहों ने जब मुँह मोड़ा
एक नदी प्यासी यह कहती
लहर-लहर बस जीवन पानी
आँखों में था दिल का टुकड़ा
सूना दर्पण, उसका मुखड़ा
पीठ फेर कर, खड़ा सहारा
जली-कटी अब उसकी बानी
ऐसी भी है एक कहानी
बिटिया जिसमें हुई सयानी
चुनर ओढ़ी जबसे धानी
अम्मा की आंखों में पानी
कहती है दुनिया दीवानी
लेकिन इसकी किसने मानी
ढूँढ रहे सब अपनी मंजिल
राहें जीवन की अनजानी
तन्हा-तन्हा अपनी बातें
तन्हा-तन्हा अपनी रातें
पोता-पोती औ रखवाली
वाह वाह ऐ साँस रवानी
आ जाएगा इक पल ऐसा
पत्ता पत्ता पतझड़ जैसा
जर्जर काया, खाली माया
रीता पनघट, गई जवानी।
चुप चुप हैं दीवारें घर की
मेरी नहीं, कहानी नर की
गाथा यश की कुछ पल प्यारे
रह जाएगी यही निशानी।।
-सूर्यकांत