कुम्भ मेला

आज बसंत पंचमी का पर्व है, यह एक महत्वपूर्ण शाही स्नान की तिथि है, नव संवत्सर, का प्रारंभ भी आज से ही होता है|
अचानक, नाग वासुकी चिकित्सालय परिसर तेज कोलाहल से गूंज उठता है| शोरगुल सुनकर सभी चिकित्सक, नाग वासुकी चिकित्सालय से बाहर आ जाते हैं|
भीड़ की अगुवाई कर रहे एक नवयुवक ने डॉक्टर साहब से कहा- डॉक्टर साहब , यह स्थानीय माननीय विधायक जी की माता जी हैं, दुर्घटना वश, इनकी स्कंध मेखला अस्थि टूट गई है, अस्थि रोग चिकित्सक ने प्लास्टर बांधकर स्वास्थ्य लाभ हेतु इन्हे घर भेज दिया है |
चिकित्सकों ने देखा कि,एक कृषकाय, वयोवृद्ध, काया,सामान्य कद -काठी , टुकुर-टुकुर ताकते नेत्र, अपने आप में सिमटी हुयी,एक सूती साड़ी में लिपटी हुयी,कत्थई स्वेटर और दुशाला ओढ़े, मानों भव सागर से पार उतरने के लिए आतुर है|
ऐसा लगता है, कि महाकुंभ का समस्त पुण्य वृद्धा आज ही अर्जित करना चाहती है|
एक ओर तो, माननीय विधायक जी की माता जी हैं, दूसरी ओर 144 वर्ष के उपरांत महाकुंभ का उत्तम संयोग बना है |
माता जी की इच्छा है, कि उनका प्लास्टर काट दिया जाये,जिससे, कि,वे निर्विघ्न होकर गंगा स्नान का पुण्य अर्जित कर सकें| उनका अनुरोध है, कि डॉक्टर साहब आप इंकार मत कीजिएगा|
चिकित्सक गण,भीड़ के सदस्यों के आग्रह, और, विधायिकी के दबाव को अब तक महसूस करने लगते हैं|
प्लास्टर के काटते ही वृद्धा को होने वाले अपार कष्ट की कल्पना चिकित्सक कर सकते हैं |इसके अतिरिक्त अस्थियों के टूटने का खतरा जानलेवा साबित हो सकता है |
चिकित्सक धर्म संकट में हैं, उन्हें एक तरफा निर्णय लेना है,
एक तरफ आस्था का जन सैलाब है, दूसरी तरफ चिकित्सक का कर्तव्य है |
“जान लेने वाले से जान बचाने वाला बड़ा होता है”
अतः चिकित्सक अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देते हुए प्लास्टर काटने से इनकार कर देते हैं , बहुत बहस हुई, चिकित्सकों का तर्क है, कि प्लास्टर कटने से वृद्धा की जान भी जा सकती है, यदि गंगा स्नान कराना है,तो, गंगाजल से गंगा स्नान करवा दीजिये| किंतु, उक्त घटना के लिए उपस्थित लोग ही उत्तरदायी होंगे, यदि कोई अनहोनी होती है, तो चिकित्सक कतई उत्तरदायी नहीं होंगे |
भीड़ का असंतोष बढ़ता जा रहा था,
चिकित्सकों ने अब विवेक से काम लिया| उन्होंने कहा, माता जी,तन की पवित्रता से बढ़कर मन की पवित्रता होती है| यह क्या कम है,कि माताजी कुंभ मेला में सशरीर उपस्थित हुयी हैं| उन्होंने कुंभ मेला में आने का पुण्य अर्जित कर लिया है,जीवन को संकट में डालने से उत्तम होगा उन्हें जीवन जीने का अधिकार प्रदान किया जाये|
विधायक जी भी चाहेंगे कि, उनकी माता जी स्वस्थ रहें,वे हम सब की भी आदरणीया हैं|
हम सब का कर्तव्य है, कि,माताजी सही सलामत रहे व चिरंजीवी हों|
मानवीय आधार पर किया गया यह निर्णय अचूक साबित हुआ, और जन- सैलाब धीरे-धीरे छटने लगा, विवश होकर माताजी को साथ लेकर विधायक जी के अनुयायी अपने-अपने टेंट की ओर प्रस्थान कर गये |
आस्था को तर्क से नहीं जीता जा सकता , आस्था को समझने हेतु मानवीय मूल्यों की स्थापना की गयी है| इस संसार में मानवता से बड़ा धर्म कोई नहीं है |
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम