आजकल वो मुझे पे कुछ ज्यादा ही महेरबाँ दिखती है,

आजकल वो मुझे पे कुछ ज्यादा ही महेरबाँ दिखती है,
गुस्से में मुझे मेरी दादी माँ से कम नहीं लगती है।
बड़ी-बड़ी आंखों से जब वो मुझे टटोलती है,
तब वो किसी शेरनी की बहन से कम नहीं लगती है।।
नाराज़गी में भी वो स्नेह आपर रखती हैं,
वो मुझे सच्ची साथी से कम नहीं लगती है।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”