बड़े मासूम सवाल होते हैं तेरे
कवि गुरू रबीन्द्रनाथ टैगोर
पारस्परिक सहयोग आपसी प्रेम बढ़ाता है...
ईश्वर का प्रेम उपहार , वह है परिवार
हम भी तो चाहते हैं, तुम्हें देखना खुश
ग़ज़ल _ सयासत की हवेली पर ।
यौम ए पैदाइश पर लिखे अशआर
सांसे केवल आपके जीवित होने की सूचक है जबकि तुम्हारे स्वर्णिम
*चाचा–भतीजा* / मुसाफ़िर बैठा
बरखा रानी तू कयामत है ...
मेरे सब्र का इंतिहा कब तलक होगा
*चलती सॉंसें मानिए, ईश्वर का वरदान (कुंडलिया)*