राम की शक्ति पूजा -निर्मेष की दृष्टि से

एक दिवस ऐसा आया
आतंक मचाया था रावण ने,
हुए निराश तभी रघुवर
मंत्रणा किया सबने मिल के।
है कोई शक्ति एक ऐसी
जो रावण का साथ दे रही,
सभी प्रयास विफल हो रहे
हे विधि ये क्या हो रही थी?
निर्बाध शक्ति के पूजन का
तब किया राम ने आह्वाहन ,
सेना सौप जामवंत को
संकल्प लिया था एक मनोरम।
एक सौ आठ कमल पुष्प ले
वेदी पर बैठे तब श्रीराम ,
आहुतियाँ यज्ञ में पड़ती रही
होता तीव्र था मंत्रोच्चार।
जब नौवे दिन थी पूर्णाहुति
दो कमल पुष्प विलुप्त हो गए ,
सोचा राम ने क्या होगा अब
क्यों पूजा मेरी अपूर्ण रहे ?
सोचा राम ने क्या बिना सीय के
मुझे अवध अब जाना होगा ?
व्यर्थ सर्वशक्तिमान बनता था
यह दंश मुझे अब सहना होगा।
हाय सीय कैसा पति था ?
जो तुझे बचा नहि पाया था ,
व्यर्थ तेरे जनको ने मेरे
हाथो में तेरा हाथ दिया था।
तभी अचानक आया ध्यान
मां कमलनयन मुझको थी कहती
क्यों नहीं अपने दोनों नयन
कमल समझ आहुति में देती?
उठा धनुष तब रघुवर ने
उस पर सर संधान किया ,
ध्यान किया उस देवी का
नयन निकालन को हुआ ।
प्रकट हुई देवी वेदी पर
बोली राम विजय तेरी हो ,
रण में करो पयान हे प्रियवर
बस तेरी ही जय जय जय हो।
प्रचलित है तब से निर्मेष
नवरात्र यह नौ दिनों की ,
सांष्टांग समर्पित रोम -रोम
नवदुर्गा के पूजन की।
निर्मेष