ग़ज़ल…01
मुख़ातिब हो बहुत सुंदर यही उलझन सताती है
करूँ बातें कि मैं दीदार दिक़्क़त बस ये आती है//1
तेरे मद रूप का ज़ादू हृदय मन होश लूटे है
मिलन करलूँ कि हो जाऊँ ज़ुदा ये हद रुलाती है//2
भुला दूँ शौक़ फूलों का करूँ काँटों से याराना
यही इक चाह मुझको अब बड़ी मंज़िल दिखाती है//3
तुम्हारे पास क्या है और मेरे पास क्या जानाँ
मुहब्बत वाह आँसू आह धड़कन गीत गाती है//4
सभी का दर्द अपना-सा लगे लगने कभी तुमको
तुम्हारी रूह तब जानो तुम्हें जीना सिखाती है//5
किसी की हार में हँसना किसी की जीत में चुप्पी
यही इक सोच जिसकी है उसे नीचा दिखाती है//6
लिए उम्मीद की हसरत चले जो राह मेंं ‘प्रीतम’
उसे हँसके सदा मंज़िल गले अपने लगाती है//7
आर. एस. ‘प्रीतम’