शाख़-ए-गुल टूटने लगे हैं

शाख़-ए-गुल टूटने लगे हैं
फूलों से साथ छूटने लगे हैं,
वो शजर भी अब बूढ़े हो चले
मौसमों के बहार देखते-देखते
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
शाख़-ए-गुल टूटने लगे हैं
फूलों से साथ छूटने लगे हैं,
वो शजर भी अब बूढ़े हो चले
मौसमों के बहार देखते-देखते
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”