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22 Feb 2025 · 1 min read

शाख़-ए-गुल टूटने लगे हैं

शाख़-ए-गुल टूटने लगे हैं
फूलों से साथ छूटने लगे हैं,
वो शजर भी अब बूढ़े हो चले
मौसमों के बहार देखते-देखते

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

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