16—🌸हताशा 🌸

16— 🌸हताशा 🌸
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आज फिर याद आयी है तुम्हारी
बीते दिनों के पिटारे खुल गएहैं
हँसते -रोते वाक़ये यूँ बिखर गए
जैसे बीती कहानियां सुना गए हों
हर कोई पूछता रहा मुझसे तेरी खबर
क्या बतायें उन्हें जब मैं ही बेखबर हूँ
न तू ही मिला कभी न तेरी नज़र हुई
इंतज़ार करती दर बदर भटकती रही
ख्वाबों में छायी रहती थी एक तस्वीर
सामने होगी कभी है ऐसी तकदीर?
तोड़ गया जब उम्मीदों के सपने
बचा है न बाकी कोई भरम भी
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महिमा शुक्ला, इंदौर(, मप्र )
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