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15 May 2024 · 1 min read

ख़ुद से सवाल

गहरा है, अवसाद है।
वजूद है, फ़िज़ूल है?
नहीं!!!
कच्चा है, घड़ा है।
घमंड है, मनुष्य है।
शुद्ध है,प्रकृति है।
काला है, मन है।
पागल है, चंचल है।
अस्थिर है, करूण है।।

प्रेम है, कलम है।
विषैला, यह क्रंदन है।।

मरता मन पल छिन-छिन है।
यह पशुता-कटुता, मैला-मन है।।

हर रोज सवेरा होता है,
चहूँओर अंधेरा होता है।
मैंनें क्यों है यहाँ जन्म लिया?
चोटिल मन पर न मनन किया।।
क्या पीड़ा कोई सुनता है?
माटी-सा तन बस ढलता है।
खाली-सा मन बस पलता है।।
कागज पर दीपक जलता है।।

– कीर्ति

Language: Hindi
1 Like · 83 Views
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