चार लघुकथाएं
लटपटिया देवी
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बेजान मोहल्ले की लटपटिया देवी ने मौका मिलते ही बरगदिया देवी से कहा-“अरी बरगदिया तुम्हारी बहू इतना सज संवर के क्यों घूमती है और बहुत ज्यादा बोलती भी है।बहू है थोड़ा डरा दबा के रख नही तो तेरे सिर का दर्द बन जाएगी….”
“काहे का दरद रे लटपटिया उसे हम बहू थोड़े ही मानते हैं,बिटिया है वो,हमारी बिटिया से भी ज्यादा प्यारी है,हीरा है वो।अब जल्दी भाग जा वरना मुन्नू के बाबूजी सुन लिए ना तो तुझे मार बैठेंगे।”
–अनिल कुमार मिश्र,राँची,झारखंड
इंसान
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सड़क पर बैठे दो कुत्ते आपस मे बात कर रहे थे-
“टॉमी देख वो बच्चा आ रहा है वो तुझे बेमतलब मारेगा,जरूर मारेगा।”
“नहीं जैकी वो मुझे नहीं मारेगा,वो इंसान का बच्चा है,उसमे संस्कार है,वो हमारे जैसा थोड़े ही है।”
—अनिल कुमार मिश्र,राँची,झारखंड
संस्कार
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संस्कार पर लंबे भाषण देकर जब गजमुख बाबू घर आये तो पत्नी ने भोजन लगाया-भोजन देखते ही गजमुख बाबू आगबबूला हो गये, बोले- “रोज एक ही तरह की सब्जी,तुम्हें ये नहीं आता,तुम्हे वो नही आता,तुम्हारा बाप ये,तुम्हारी माँ वो….”
शरबतिया देवी मन ही मन सोच रही थी-“कितने अच्छे संस्कार हैं इनके।”
–अनिल कुमार मिश्र,राँची, झारखंड
हिंदी डे
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हिंदी दिवस समारोह में हिंदी के ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर प्रभावशाली भाषण देकर जैसे ही पाठक जी घर आये,बेटे ने कहा-“डैड कैसा रहा आपका हिंदी डे?”
“तुझे किसने बताया मैं कहाँ गया था।”
“भूल गये फादर आपने ही तो कहा था कि आप हिन्दी डे पर स्पीच देने जा रहे हैं।”
पाठक जी आत्मग्लानि से भर गये।
-अनिल कुमार मिश्र,राँची,झारखंड।