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28 Dec 2024 · 1 min read

कहीं फूलों की साजिश में कोई पत्थर न हो जाये

कहीं फूलों की साजिश में कोई पत्थर न हो जाये
बहुत ज्यादा उगाने में ज़मी बंजर न हो जाये

जिसे नफ़रत के तमगे ने सताया ही सताया हो
कोई क़ातिल मुहब्बत में कहीं रहबर न हो जाये

जहाँ बस जुर्म होते थे सितमगर का जहां सारा
रहा बियबान बन कर के हँसी मंजर न हो जाये

बचा लो नाक हर इक चीज को सूँघों न ऐसे तुम
जिसे हम फूल कहते हैं कहीं खंजर न हो जाये

महज़ चाहत के किस्से ही सुनाते हैं सभी सबको
क़यामत ही कहीं चाहत सभी मिलकर न हो जाये

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