साध्य पथ
///साध्य पथ///
मनु गा मधु सपनों के गान,
असीम जग के विशद वितान।
गीत गा अनहद स्वरों से,
जो बेध दे अन्तर विहान।।
मंजुल रथ आलोक पथ का,
प्राचल प्रवृत्त धवल नीर।
विहस विहंग साध्य पथ पर,
चल अनवरत तू धीर वीर।।
नव प्रेरणा नव अलि कंदल,
लेकर सुगंध यश प्रवीर।
भाव पूरित अन्तर हृदय तल,
चेतना मय साधक सुथीर।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)