महाकाव्य लिखकर दिखलाऊँ |

महाकाव्य लिखकर दिखलाऊँ |
जगत बीच खद्योत कहाऊँ |
बने ज्योति का भी हरकारा |
करूँ दूर भी जगत अंँधेरा ||
नहीं दंभ है कोई मन में |
नहीं तृष्ण भी संचय धन में |
खपा स्वंय को अंध मिटाऊँ |
महाकाव्य लिखकर दिखलाऊँ ||
जगत द्वैत है द्रोण आचरण |
यही समस्या प्रबुद्ध कारण |
सदा देह है एक अखाड़ा |
महे भाव हो जिसे नवाड़ा ||
ग्रसित मोह से जग में सारे |
लिए अंध भी जीवन हारे |
बिके ज्ञान कब यह बतलाऊँ |
महाकाव्य लिखकर दिखलाऊँ ||
____संजय निराला