तू आदमी है अवतार नहीं

कभी गिरने से तू डरना मत गिरकर ही संभला जाता है।
गिरकर उठने वाला ही तो हर सपना सच कर पाता है।।
गिर कर उठ फिर उठ कर चल जीवन का यही दस्तूर है।
यदि सीख गया उठ कर भगना तो समझ विजय की ओर है।।
तू वक्त को थाम नहीं सकता तुझे वक़्त के साथ ही चलना है।
यदि वक़्त हाथ से निकल गया तो ख़ाली हाथ ही मलना है।।
तेरा जीवन एक कारवाँ है दिन रात जो चलता रहता है।
वक़्त हाथ में रेत की माफ़िक़ हाथों से फिसलता रहता है।।
कुछ रिश्ते जीवन में तेरे पीछे छूटने की खातिर ही होते हैं।
ऐसे रिश्तों के पीछे भागने वाले पूरे जीवन बस रोते ही हैं।।
जो व्यर्थ समय को गँवाता है जीवन में हार को चखता है।
जो समय के साथ में चलता है जीत को जेब में वही तो रखता है।।
कहे विजय बिजनौरी जीवन में कभी भी होती उसकी हार नहीं।
जो हार के जितना सीख गया समझो वह आदमी है अवतार नहीं।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।