महाकुंभ का प्रतिवाद क्यों..?

महाकुंभ का प्रतिवाद क्यों..?
हिन्दुत्व में जिसे आस्था नहीं है,
महाकुंभ को मृत्युकुंभ कहते।
स्वछंदता अभिव्यक्ति का मिला है,
अपमानित वो हिन्दू को करते..
पुरातन पौराणिक ये परम्परा है,
प्रतिवाद क्यों अमृत स्नान से है।
रहो ना तुम अपने ही घर में ,
खींचकर कोई ले जाता नहीं है..
सनातन एकता का आह्वान ये है,
मतलब नहीं सिर्फ स्नान से है।
सद्विचारों को संगमतट है यह,
श्रद्धा विश्वास का दिव्यस्थान ये है..
मनोभाव संतो से जब हो प्रभावित,
कुविचारों का विसर्जन समझना।
सद्विचारें जब मन में हो प्रवाहित,
शुभ्र शांत तुम चितवन समझना..
तप से निखरे इन साधुओं के,
बल -पराक्रम से झुकता ऐश्वर्य है।
पाप से जब हिलती है धरती,
तो इनके पुण्य से रुकता प्रलय है..
सान्निध्य लेकर उन तपस्वियों का,
जल अमृत समान बनता हृदय है।
होता तभी तो प्रारब्ध सुखमय,
इतना समझ नहीं आता निर्दय है..
उन्नीस सौ चौवन में भगदड़ हुई थी,
हजारों मरे और घायल थे।
पर चलता रहा महाकुंभ पर्व था,
जन-जन तो नृप के कायल थे..
मरते तो हजारों हाजी भी है,
पर मक्का में हज रुकता नहीं है।
जिन्हें चाहिए प्रमाण पुण्य का ,
वो दूसरों से क्यों लेता नहीं है..
घाव ना कुरेदो तुम उनका,
यातना जिनके पूर्वजों ने भुगता।
जयचंद थे उस समय अनेकों,
आज भी वही जयचंद दिखता..
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २२/०२/२०२५
फाल्गुन ,कृष्ण पक्ष, नवमी तिथि,शनिवार
विक्रम संवत २०८१
मोबाइल न. – 8757227201
ईमेल पता – mk65ktr@gmail.com