*सीता-स्वयंवर*

सीता-स्वयंबर
चमके चंदन, दमके काजल,
अधरों पर मुस्कान सजी,
केशों में महके रातरानी,
घनश्याम घटा-सी लट उलझी।
माथे की बिंदिया सूर्य सम,
मांग सजी सिन्दूरी,
कानों में झूमर झनक रहे,
कंचन कांति की पूरी।
गजरा बंधा काली अलकों में,
चूड़ियाँ खनकें हाथ,
नूपुर बोले रुनझुन गाथा,
मधुर प्रेम के साथ।
रंग बिरंगे रेशम वस्त्र,
हौले-हौले लहराते,
कमरबंद की झंकार सुन,
मृगनयनी शरमाते।
प्रीतम पथ निहार रही वह,
आँचल में अरमान,
श्रृंगार किए स्वागत को वह,
प्रेम भरी पहचान।
©® डा० निधि श्रीवास्तव सरोद