ना मोहब्बत ना इज़हार-ए-वफ़ा,ना कोई जज़्बात रहा।

ना मोहब्बत ना इज़हार-ए-वफ़ा,ना कोई जज़्बात रहा।
मेरे बेज़ार-ए-दिल में अब ना किसी का ख़याल रहा।।
मैं तो शाख़ से टुटा हुआ वो सूखा पत्ता हूँ।
जिसे सिर्फ़ ख़ाक होने का इंतज़ार रहा।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”