अर्पित किया सब मैनें, चाह में उनके दीदार की।

अर्पित किया सब मैनें, चाह में उनके दीदार की।
न हो ओझल नजर से, घड़ियाँ उन पर वार दी।
अब तो वो मंज़र है कि, दीदार भी बेगाना लगता है।
दफन हो गई कफन की ओट में, सब फसाना लगता है।
उन्हे याद न हो शायद, पलभर की जुदाई की तडप।
नजरों से ओझल होना, मेरी बेचैनी का सबब होजाना।
हर दुआ में बस उनका, साथ और दीदार मागा था।
वो तो खुदगर्जी में खुद को ही, बे आरज़ू कर बैठे।
श्याम सांवरा….