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25 Jan 2024 · 1 min read

नज़र चुरा के वो गुज़रा

नज़र चुरा के वो गुज़रा, मेरे क़रीब से।
छीना किसी ने उसे, जैसे मेरे नसीब से ।

मोहब्बत हमसे न थी , तो कह देते हमें
क्यों कहलवाया हमें, मेरे ही रकीब से ।

बाज़ी इश्क़ की ,जाने क्यों हम हार गये
टुकड़े चाहत के हमने रखे थे तरतीब से।

सोने के सिक्के,ले गये चाहतें ख़रीद कर
कीमत नहीं चुकाई गयी , इस ग़रीब से।

ख़लिश दिल में थी ,लहज़ा मगर नर्म रखा
बात हमने की सदा ,अदब ओ तहज़ीब से।

सुरिंदर कौर

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