यादों की अलमारी से जब मैंने कुछ धूल हटाई,

यादों की अलमारी से जब मैंने कुछ धूल हटाई,
खुद में जाकर खुद को पाकर अंतर्मन से मुसकाई
ये मै ही कर सकती थी मुझसे मुझको आशा थी,
जीवन को जीवन जीने की वर्षों से अभिलाषा थी,
किनारों से विचलित मन को दरिया से मिलवा पाई,
खुद में जाकर,खुद को पाकर अंतर्मन से मुसकाई