कैसा है यह पागलपन !!

पवित्र नदियों के संगम में ,
डुबकी लगाने से कौन से ,
दूध के धुले बन जाओगे तुम ।
अपितु नदियों से उनकी पवित्रता छीन कर ,
दुगुना पाप कमाओगे तुम ।
तुम्हारी मतिहीनता ,उद्विग्नता और ,
असंतोष देखकर मन ही मन हंसेगी और कहेगी ,
हे मानव ! कितने पागल हो तुम ।
दर्पण अपने मन का पहले देखो तो सही ,
अपनी अंतरात्मा की एक बार सुनो तो सही ,
ईश्वर को पाने चले हो ,
पहले ईश्वर के योग्य बनो तो सही ।
यूं ही मेरे तट को तुमने कुरुक्षेत्र का मैदान बना दिया ,
खुद भी मरे औरों को भी मारा,
यह तो सोचो !
ऐसा कुकृत्य करके ” उसे ” क्या मुंह दिखाओगे तुम ।
अब भी समय है पहले खुद का मन साफ करो ,
तभी तुम मेरे और प्रभु के कृपा के पात्र बनोगे तुम ।